बुद्धकालक निर्माणमुखी इतिहास

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उपेन्द्र भगत नागवंशी,
नेपालक तराइक्षेत्रक भूमिमे आइस’ पच्चिससय अठ्ठासीवर्ष पहिने ‘‘अपनो जीवु आ दोसरोकेँ जीब दियौ’’ के मूलआदर्श एवं सिद्धान्तक पाठ विश्वमे फैलौलाह । ओ आइयो ओतबे प्रासांगिक अछि ।
बुद्धक बचपनक नाम सिद्र्धाथ गौतम छल तैँ हुनका गौमबुद्ध कहल जाइत अछि । आइ बैशाख–२९ गते बुद्ध जयन्ति छै । एहि अवसर पर हुनक जीवन कालक समाज व्यवस्थाक प्रसंग उल्लेख करब प्रासंगिक बुझाएल अछि ।
ईशा पूर्व ५६३ मे वर्तमान लुम्बनी प्रदेशकेँ रुमन्देही (लुम्बनी) वनमे सिद्धार्थ गौतमे जन्म ग्रहण कएने छलाह । हिनक देहावशान ईपू ४८६मे ९७ वर्षक आयुमे भेल छल । देहावशान समयकेँ महापरिनिर्वाण सम्बोधन कएल जाइत अछि । हिनक पिता सुद्योधन गणव्यवस्थामूलक समाजक गणपति छलाह । बुद्धक एकटा पत्नी आ एकटा पुत्र छल । पुत्रक नाम राहल छल ।
अहिंसा, शीलता, निष्ठा आ सदाचारक शिक्षा महात्मा बुद्धक देन अछि, जे आधा संसारमे फैलल अछि । आधा संसार लाभान्वित हुअस’ अछोप रहिगेल अछि । जे देश–समाज बुद्धक मूलसिद्धान्तस’ लाभ उठाब सकल लाभान्वित भेल ; ओ देश, समाजक सब वर्ग–समुदाय खुशहाल आ शान्त अछि । लाभ नइ लिअ सकल ओ देश, समाज आशान्त, अराजकता अस्थिरतामे बेसी रहैत आयल अछि । एकबेर संसार दिश नजैर घुमाक देखला पर सहज रुपमे ओ बोध कएल जासकैए ।
चीन, जापान, तिब्बत,भुटान, थाइल्याण्ड, बर्मा, लाओस ,कम्बोडिया, श्रीलंका,ब्रिटेन एतबए नइ भारत नेपालमे जे समुदाय बुद्धधर्ममे विश्वास राखैत अछि ओइ अनुकूलक आचारण कएने अछि हुनक जीवन खुशहाल अछि । बुद्धधर्मकेँ मानबाला जानबाला स्वयं बुद्ध अछि । किएक त’ बुद्ध निर्वाण (निर्माण) सिखबैत अछि , ध्बंस नइ !
तथागत गौतम बुद्ध कहने छथि–‘‘ नइ हम प्रथम छी नइ अन्तिम, हमरास’ पहिनहुँ बहुत बुद्ध भेल आ हमराबादो बहुत बुद्ध होएत !’’ बुद्धक ई महावाणिक पाछा एहो कारण हुअ सकैए स्वयंके जानु पहिचान आ मानु तखन जीनगीमे कोनो ओझराहट नइ रहि जाएत । सभ असहज बाट सहज भजाएत । मोक्ष सेहो सहजतापूर्वक प्राप्त भजाएत । मोक्ष प्राप्ति लेल सीताराम–सीताराम जपलास’, हरेशिव–हरेशिव रटलास’ अथवा राधे–कृष्ण कएलास’ मात्र नइ होएत ।
एहन महान परम्पराक बखानी बुद्धक सम्बन्धमे मिथिला–मधेश क्षेत्रक लोक विगतमे बडथोर लाभ लिअ सकल । तैँ बहुतराश साक्षय उपलब्ध मिथिला–मधेशमे नइ रहल अछि ।
किएक त’ बौद्धधर्मकेँ मेटाबलेल हरेक प्रयास भेल । आर्य–ब्राह्मण, ओइकार्यमे सफलता पौलाह । मुग्लशासकसभ भारत वर्षमे अपन वर्श्चव बनाब लेल बौद्धधर्मकेँ नाश कराबमे सहयोगी रहलाह ।
बौद्धभिक्षुकेँ नृशंस वध आ बौद्धविहारकेँ आगिलगाक नाश क’ देलगेल । जाहिस’ ज्ञानक बहुुमूल्य खजानासभ स्वाहः भगेल । तथापि जे उपलब्ध श्रोत छै ओइस’ अपेक्षित लाभ आइयो मिथिला–मधेश नइ ल’ सकल अछि ।
बौद्धधर्मक मूलसार कहल जाय त’ बौद्ध निर्वाण सिखाबैत अछि । सनातन (हिन्दु) धर्म मोक्ष प्राप्तिक सहज मार्ग ! कहवाक तातपर्य अछि बौद्धधर्म अनिश्वरवादी धर्म अछि । जाहिस’ मानवकेँ मानवीय पक्षकेँ उठाबमे विश्वास करैत अछि । इश्वरक खगताक अनुभूति नइ हुअ दैत अछि ।
सनातनधर्म अन्तर्गत हिन्दुधर्म अइकेँ विपरित दिशा दिश चलगेल अछि, पाण्डा पुरोहित सभक कारणे ! इश्वरक आवश्यकता हरेकजीवकेँ अछि ,ई बोध करबैत अछि । ईश्वरीय शक्तिक प्राप्ती बेगर मोक्षक सही प्राप्ती नइ होएत ई बोध करबैत मानवकेँ जीवनभरि ओझरौने रहैत अछि । ई ओझराहटे मानवकेँ अनेक दुःखक कारण बनैत अछि । बुद्धधर्ममे एहन ओझराहट नइ अछि ।
निर्वाण आ मोक्ष दूनु दू विषय अछि । ई बूझब आवश्यक अछि । निर्वाण परिर्वतनक सूचक अछि मोक्ष अन्त ! परिवर्तन देशकाल समय परिस्थितिकेँ बुझैत गमैत चलब लेल प्रेरित क’ सकैत अछि । मोक्ष यथास्थितिमे रहिक संसारिक सभकिछु त्यागिक जाएके लेल तयार करब काज मनोवैज्ञानिकरुपमे करैत अछि । जखन की,सत्ये कहल जाय यथास्थितीमे कोनो परिवर्तन चाहियोक नइ हुअ सकैए ; ओझराहैट एतहि अछि । अइ ओझरीकँे सोझराएब तकर बेगरता अछि ।
एकटा व्यक्ति सिद्धार्थ गौतम अपन जीवनकालमे देवता जकां पुजल गेलाह । राजा आ रङ्क सभकेँ सभ हुनक पाछा चलिपड़ल । हुनक करुणाक पट, ह्दयकद्वार मानव लेल खुजल रहैत छल । डाकु अंगुलीमाल, गणिका आम्रपाली, कलहकारणी सुजाता,लेल समेत हुनक धम्म(धर्म)मे स्थान छल ; ततहि कौशल सम्राट पसेनदी, श्रेष्ठी एवं अनाथ पीण्ड लेल सेहो ! जे महामानव संसारक करोड़ो लोकपर अपन छोड़ल बिचार आ सिद्धान्तस’ राजकरैत आएल छथि ।
लोककेँ करुणा,शील, पज्ञाक बाट देखाबैत आएल छै, तखन हिनक कद, लिप्साक ताण्डव रचएबाला सभस’ छोट अछि । ई प्र्रश्न इतिहास रचियताक लगमे उत्तरलेल अखनो ओहिना ठाढ़छै जहिना बुद्धकालमे छल । जौं से नइ ! तखन मिथिला–मधेशक इतिहासमे समेत बुद्धकेँ मानक बनाओल जाय चाहैत छलैक, जकर चर्चोधरि नइ आबैत अछि । नइ कएल जाइत अछि एहन बइमानी किएक !
आरम्भिक कालमे कविलाई समूह होइत छल । अइ व्यवस्थामे लोक छोट–छोट समूह बनाक रहैत छल । कबिलामे सीमितवर्ग सामेल रहैत छल । जाहि समूहकेँ ‘गण’ सम्बोधन कएल जाइत छल । गण व्यवस्थामे गणक प्रमुख ‘सरदार’ होइत छल । आइयो बहुतराश जातिय–समुदायक समूहक प्रमुख सरदार कहाइत अछि । जेना–नागवंशी,तमोली, आदि समुदायमे अखनो समूहक प्रमुख अगुवाकेँ सरदार सम्बोधन कएलजाइत अछि ।
गौतम बुद्धक समयमे विभिन्न ‘गण’ क व्यवस्था छल । गण व्यवस्थामे ‘जन’ माने जनता लग स्वतन्त्रता एवम् सहमतिक शक्ति केन्द्रित रहैत छल । गण व्यवस्था जनताकेँ स्वतन्त्रण छवी प्रदान करैत छल । वर्तमान समयमे आविक जनगणतन्त्रक प्रसंग जे उठैत अछि । बहुतराश देश अइके आत्मसाथ कएने अछि । बस्तुतः ओ ‘जन’ आ ‘गण’ व्यवस्था फलित भेल आ भरहल अछि ओ बुद्धकालक देन अछि । जनगणकेँ व्यवस्थापन शैली सेहो बुद्धेकालमे भेल । जाहिपर आइ जग गुमान करैत अछि ।
बुद्धक समयक ‘गण’ व्यवस्था प्रजाहित लेल मूलतः होइत छल । गणव्यवस्था जनतान्त्रीक व्यवस्थाक अस्तित्वरक्षा हेतु गण–गणबीच संघर्ष चलैत रहैत छल । अखनु संसारमे अप्पन–अप्पन वर्चश्व स्थापित करए वास्ते बहुसंख्यक देशबीच संघर्ष चलैत अछि । समान सहभागीता आ सहअस्तित्व लेल नइ ! गौतम बुद्ध शाक्य गणस’ सम्बद्ध छलाह । शाक्यसभक निकटबत्र्ती गण ‘कोलिय गण’ छल ।
एकसमय एहन आएल शाक्यगण आ कोलिय गणबीच पानिक कारणें पैघ घमाशान भेल । शाक्य आ कोलिय गणबीचमे प्रकृतिक बहैत जलधारास’ जल उपयोग करब विषय पर घमाशान मचिगेल । ओ विवादमे शाक्यगणकेँ नीयम अनुसार सिद्धार्थ गौतमकेँ गृहत्याग’ पड़लैन्ह ।
अइसभ तथ्यक अध्ययन मननस’ प्रमाणित होइत अछि जनमानसमे वर्णव्यवस्था आ एकतन्त्रीय शासनव्यवस्था एवं अवैदिक जीवनशैली यथावत् राखलगेल छल । अइ ओजहें भूमिस’ जुड़ल बुद्धक नीति,सिद्धान्त प्रतिपादित नइ भेल । आयातित चतुर–चलाक आर्यक विधना पुष्पित,पल्लवित आ पोषित होइत रहल ।
गौतमबुद्ध एकाएक अविभूर्त भगेलाह ? सभटा ज्ञान दिव्य प्रकाश जकाँ हिनकामे उत्पन्न भगेलैन्ह ? एहन प्रश्न उठैत आएल अछि मुदा एहन बात नइ अछि ! समय, परिस्थितिस’ संघर्ष आ अनुभूति करैत बुद्ध बुद्धत्व प्राप्त कएने छथि । गौतमबुद्ध अपन पुर्खाक विरासतकेँ बाहक छलाह । ई बुझब आवश्यक अछि । ई बुझि गेला पर उपर्युक्त प्र्रश्नमोनमे अहुरिया नइ काटत ।
जे विरासत गौतम बुद्धकेँ महामानव बनबैत अछि अथवा कहल जाय बनौलक ओ मिथिला–मधेश आ नेपालदेशकेँ गौरवपूर्ण सम्पत्ति अछि । अइ अतुलनीय सम्पत्तिपर हमरासभकेँ गुमान करक चाही । राणा, राजासभ सत्ता,लिप्सा सुरा सुन्दरीमे रमैत रहलाह ; इतिहासकारक कलम सेहो तहिना लिप्सायुक्त राज्य व्यवस्थापक दिस ससरैत रहल, घुसकैत रहल । तैँ सही साक्षय इतिहास जानब बुझब चेष्टा नइ कएलगेल ।
आब इतिहासकार सभकेँ नेपाल नेपालीक नाममे मिथिला मधेश आ बुद्ध सन–सन पुरोधाकेँ इतिहास जान’ पड़तै, बुझ’ पड़तै आ ओइ मुताविक लेखन करए पड़तै । लिप्साक इतिहासस’ नेपाल अथवा विश्वमे आबबाला पीढ़ीकेँ अपन सही इतिहास नइ बनि सकत । जौं बनाबक कुचेष्टा कएलगेल तखन हाहाकार युक्त इतिहास होएत । संस्कृतिक धरातल पर मापनक प्रयास कएलापर आपरुप चिन्हा जाएत । के सूर के असूर ! आक्रमणकारी के, व्यविचारी के ! के मूलनिवासी, के वभेदी के अविभेदी !
सनातनधर्म अन्तर्गत एकटा संस्कृति झूठ, लुट आ भोगक रहैत आएल अछि । ततहि दोसर सत्य,न्याय आ सदाचार अछि । अइके सही स्वरुप इतिहास रचियता कलमजीवीसभ सर्वसाधारणकेँ देखाब हेतु प्रगतिशील रहक चाही । तखने सवर्णबीच सहअस्तित्व सबलतासंग कायम रहत । गौतम बुद्ध स्वयं अपने आपमे पैघ इतिहास अछि ।
हिनक उपदेशसभ अनुपम अछि; तैँ बुद्धधर्म विश्वधर्म भ’गेल अछि । विश्वसंस्कृतिकेँ,मानवताकँे मार्ग प्रसस्त करैत अछि । बुद्धवचनकेँ विश्वक समृद्धधर्म–वचन अहि दुवारे मानल गेल अछि। जाबतधरि मनाव समाज रहत हिनक नाम चलैत रहत ।
क्रियाक प्रतिक्रिया होइत अछि । ई प्रकृति आ श्रृष्टिक नीयम अछि । पुष्यमित्र शुंगकेँ प्रतिक्रान्तिक प्रतिक्रियामे आठम् शताब्दिधरि बौद्धभिक्षुसभ
सक्रिय छल । ताबतधरि बौद्ध केन्द्रसभकेँ निर्माण आ विकास होइत रहल ।
बौद्ध धर्मकेँ विकसित आ प्रचारित करएमे अहम् योगदानी सम्राटक रुपमे सम्राट हर्षवद्र्धनकेँ नाम सेहो सम्मानपूर्वक लेलजाइत अछि । हर्षवद्र्धन पछाइत बौद्धधर्म आ बौद्धकेन्द्रसभकेँ संरक्षण दिअबाला केओ प्रवल सम्राट विद्यमान नइ रहला । ब्राह्मणसभ आक्रान्तायी सभकेँ अपन पक्षमे करैत गेल । एहन अवस्थामे बौद्धधर्मक प्रचार सम्भव नइ छल ।
अन्ततः नओम् शताब्दिमे आविक बौद्धधर्मीसभ दम्महिन हुअ लागल । ओहि बीचमे नाथ समप्रदाय अपन योग–तपकेँ अस्त्रस’ ब्राह्मणबादस’ टक्कराइत रहल । कमोबेस बुद्धक अनुयायीसभ फेरस’ अपन अस्तित्व जोगाबमे माथ उठौलक । मुदा सफल्ता नइ नाथ समप्रदायकेँ भेट सकल आ नइ बुद्धधर्मक अनुयायीसभकेँ ।
बुद्धकेँ बिष्णुवतारक रुपमे स्वीकारलगेल । तखन शंकराचार्य प्रच्छन्नबुद्धक उपाधी ग्रहण कएलाह । वैदिक आ भागवत् धर्म–सम्प्रदायक विचारकेँ समिश्रण क’क’ शंकराचार्य चललाह । अपन परचम लहराबैत गेलाह आ बुद्धक सन्देश विस्थापन दिस चल गेल । सुच्चा बौद्धर्मी सेहो । शंकराचार्यक नीति सिद्धान्त प्रतिपादित भेला पर बौद्धक बहुतराश बात विचार अपनामे सम्माहित कएने शंकराचार्यक प्रचार–प्रचार जनजनमे कएल जाए लागल ।
तकराबाद बुद्धधर्म मिथिला मधेशमे बैठ गेल त’ फेर आइधरि उपर नइ उठि सकल । बहुत राश बौद्धधर्मी पलायन कगेल । बहुतो अन्य धर्म सम्प्रदायमे मिझराक कात भगेल, भुतिया गेल । आर्य संकृतिक ध्वजा कहल जाए त’ बस्तुतः सर्वप्रथम मिथिलेमे फहराएल ।
वैदिक कर्मकाण्डक प्रसारबेसी भेल । बौद्धधर्मक प्रसार आ प्रभाव अधिक भेलास’ वैदिक संस्कृति मिथिलामे सेहो शिथिल छल । मुदा आर्य सभक आधिपत्य भेला पर जनजीवनमे जमल बुद्धधर्मकेँ अवशान भगेल ।
एतेकधरि जे आर्य आधिपत्यस’ पूर्व मिथिलाक सांस्कृतिक सामाजिक धर्म आ संस्कृतिसभ हेराएल ओ हेराएले रहिगेल । एगारहम शताब्दिबाद एक्कहिबेर चौदहम शताब्दिस’ मिथिलाक पलटल कायाक इतिहास देखाइत अछि । ओइबीचक इतिहास गौण बुझि पड़ैत अछि ।