प्राणिजन्यकेँ समतुल्य जीवन–पद्धति बोधक ‘जुड़शीतल’

4 दिन पहिले प्रकाशित
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उपेन्द्र भगत नागवंशी
आइ मङ्गलदिन,बिक्रम सम्वत् २०८२ साल बैशाख–२गते, नवकावर्षकेँ दोसर दिन । आजुक दिनके मिथिला समाज एवं थारु समुदायमे विशेष महत्वक दिन होइत छै ।
कियक त’ आजुकदिन प्रकृति आ संस्कृतिक मधुरमास होइत छै । उत्साह वर्धनयुक्त समय होइत छै । जीवन–जगतकेँ आनन्दीत करब हेतु आजुका दिनकेँ प्रेरणाप्रद समयके आरम्भिक दिन मानल जाइत अछि ।
बैशाख एकगते नवकावर्षके रुपमे सनातनी समाज मनबैत छथि । एहि नवल वर्षक पहिलदिन मिथिला आ मैथिल समाज ‘सतुआनि’ रुपमे मनाक उत्साहीत होइत छै ।
फलसम्राट आमकेँ टीकुला, जौ, बदाम, गहुँम, मकै, रहरी, केराउ, मटर, भेटमाउस आदि प्रकारके अन्नको फूलाक’ सुखाक’ एवं उलाक’ सतुवा बनाओल जाइत छै । जे बस्तु एहि मासमे रब्बि फसलके रुपमे गृहस्त अपन घरमे अनने रहैत छथि । तहि रब्बि अन्नकेँ नेमान सतुवाक रुपमे करैत छथि ।
गृष्मऋतुमे सतुवा सुपाच्य आ पोषक होइत छै । दैहिकशक्ति प्रदायक, पेटके लेल शितल आ पाचन प्रणालीकेँ दुरुस्त राखबाला खाद्य होइत छै–सतुवा ।
लोक घर–देहरी लीपपोतिक चिक्कन बनबैत छै । घर गोसांइकेँ नीपक’ टीकुला, सतुवा आ गूड़ चढ़बैत छै । आ, फेर प्रसाद स्वरुप ओ ग्रहण करैत छै । तैँ बैशाख महिनाकेँ एहि पहिल दिनकेँ पावनिकेँ ‘सतुआनि’ सम्बोधन कएल जाइत छै ।
दोसरका दिन ‘जुड़शीतल’ मनाओल जाइत छै । एहि दिनकेँ पर्वकेँ मिथिलावासी ‘जुड़शीतल’ सम्बोधन करैत छथि । ततहि देशक थारु समुदाय‘सिरुवा’ पावनि कहैत जुड़शीतल मनाबैत छैथ ।
विधि–विधान—
भिन्सरे ऊठिक’ बाट–डग्गहर जतह कहियो झाडू–खड़हरा नइ देल जाइत छै ताहु स्थानकेँ बहारब–सोहारब,कूड़ा–कर्कट हटाएब काज कएल जाइत छै ।
भिन्सरे–अन्हरौखे अपन घरक सन्ततीकेँ जेष्ठजन माथ पर अञ्जुलिस’ थपथपाक’ जल राखैत सिक्त करैत जुड़बैत छैथ । अर्थात् जुड़ाएल रहु, सिक्त रहु, शुद्ध रहु, नेत आ धर्म बनाक रहु, प्रकृति आ संस्कृतिकेँ आत्ममामे बैसाक राखु श्रेष्ठजनकेँ लेहाज करु आदि आर्शिवचन देल जाइत अछि ।
जीवन आ जगतकेँ सन्तुलन बनाक राखब लेल जल आ गाछ(जङ्गल) पृथ्वी बंचाक’ राखब, जियाक’ राखब, तखने प्रणीजनके जीवन जोगल रहत ! जीवन सार्थक आ सबल रहत’ ई अन्तरनिहित सन्देश एहि पर्वमे सन्हियाएल आइब रहल छै ।
बाट–घाट साफ सुथर क’क’ पानि छिड़कल जाइत छै । खेत–आडि़, बाडि़–झाडिऱ्मे रहल गाछ–बृक्षकेँ जडि़ कोरियाक’ ओहिमे पानि पटाओल जाइत छै ।
ई एहन कर्म विधान छै जे प्रकृतिकेँ रक्षा कोना आ कोनतरहें कएल जाय ? ताहिकेँ सांस्कृतिक अनुष्ठान रुपमे लोक अनिवार्यक पालन करैत छै ! एवं तेहने लोक–व्यहारकेँ जीवनमे पालन करब ओ गुण विशेषता अंगिकार करब हेतु सनततीकेँ सीख दैत छथि ।
कादो–माटिस’ खेलब, ओहिमे लेहराएब आओर नइ त’ माथमे माटिक तिलक लगाएब काज अरबैसक’ जुड़शीतलमे कएल जाइत छै । जलके प्रतिक देवता आर्यदेव ‘इन्द्र’, सृष्टिक अबिष्कार आर्यदेव ‘ब्रह्मा’, पालनहार देव‘बिष्णु’ आ गणव्यवस्था पक्षधर अग्रअनार्य देव ‘महादेव–शिब’केँ प्रतिक रुप धारण क’क’ लोक कादो–माटि खेलाइत जल ढारैत छै ।
शहर बजारमे ई प्रथा भनेहि देखबमे नइ अबैत होए मुदा गाम–समाजमे अखनो एहन परम्परा जीवित छै । तै स’ लोक लयात्मक रुपमे गबैत कहैत छै—
‘माटिस’ उब्जल देहिया अन्ततः माटिमे मील जाइत छै !
केओ नइ किछु ल’क’ अएलैए आ नइ किछु ल’क’ जाइत छै !!
एहन धारनायुक्त कहबी फदुक्का गबैत–कहैत सांस्कृतिक जागरण करैत पृथ्वी, प्रकृतिप्रति सबगोटे नतमस्तक होउ ओहन सन्देश माटि–कादो खेलैत जलस’ भिजैत लोकगायन करैत रहैछ ।
बैशाख महिना आगमनक एहि समयमे उपलब्ध होबबाला खाद्य परिकार दालि भात,तिमन–तरकारीके अतिरिक्त–करी–बरी, विभिन्न खाद्य–वस्तुकेँ परिकारमे तरुवा बघारिक तयार करैत छै ।
जुड़शीतल दिनके भोजनमे सोहिजन, सजमनि, घिउराक तरकारी आ कड़ीबड़ी अनिवार्य होइत छै ।
सबबस्तु राइन्हक तयार कलेला पर केराके पात पर सम्पूर्ण खाद्य परिकार राखिक’ घरक कूल देवताक अतिरिक्त घरके मुख्य प्रवेशद्वार आ अन्य आगमन निकास मार्ग केबार–द्वार–फटक लग चढ़ाओ जाइत छै ।
जाहिमे ‘सेमार’केँ लच्छा रुपि माला राखल जाइत छै । सेमार जलमे उत्पन्न होबबाला एक प्रकारक शीतल घास होइत छै ।
भारतमे सीख समुदाय बैशाखीके रुपमे ई पर्व मनबैत छैथ । थाइल्याण्डमे सप्ताह व्यापि रुपमे ‘सोक्रान वा महासोक्रान पर्व कहिक जुड़शीतल मनाओल जाइत छै ।
प्रकृतिक बस्तुकेँ प्रयोग क’ प्रकृतिक सन्तुलन कायम रहे मानव मात्र नइ जल–जीव एवं प्राणिजगतकेँ कल्याण–भावक कल्पणा निहित रहैत छै । ओ बात एहि जुड़शितल पर्व मादे प्रत्यक्ष देखार होइत छै ।
तैँ प्रकृति संस्कृतिक एहि चराचर जीवन–जगतमे सबके अपन–अपन ठाममे ओतबे महत्व छै । एककेँ बिना दोसर आ दोसरके बिना तेसर नइ रहिसकैए !
प्राणिजन्यकेँ समतुल्य जीवन–पद्धतिलेल सबहक अस्तित्व स्वीकारक पर्व गृष्म ऋतुक आरम्भिक कालमे सतुआनि, जुड़शीतल, नवकावर्ष वा सिरुवा पावनि वा बैशाखी जतह जे नामस’ मनाओल जाए मुदा ई लोकपर्व प्रकृतिके सन्तुलन, संरक्षण, कएल जाय आ जीवन खुशहाल समृद्ध बनाओल जाय मूलतः सन्देश प्रवाहित करैत आएल छै ।