सीमाञ्चल समदिया,
जनकपुरधाम । चित्रमे देखाओल गेल बनस्पतिय झारके बोलचालके भाषामे ‘रक्त गुम्मा’ वा ‘बड़की गुम्मा’ कहल जाइत छै । अइके अंग्रेजीमे ‘नॉट ग्रास’ एवं ‘लॉयन्स इयर’ वा ‘लॉयन्स टेल’ सम्बोधन कएल जाइत छै ।
रक्तगुम्माके आयुर्वेदमे बहुत रास नामस’ जानल जाइत छै । जाहिमे प्रमुख नामसभ छै-‘ग्रन्थिप्रर्णिका ’, ‘महाद्रोणपुष्पी’, ‘रक्तद्रोणपुष्पी’ ! एकरा लैमिएसी कूलके रक्तगुम्माके बनस्पतिय नाम ‘लिओनॉटिस नीपेटैफोलिया’ छै ।
रक्तगुम्मा उष्णतायुक्त स्थानमे अधिक उत्पन्न होइत छै । अइ झारके लेल पानिके आवश्यकता ओतेक नइ पड़ैत छै । पानिगर स्थानमे होइत छै मुदा लत्तरैत नम्मरैत जाइत छै फूल लाएब लेल गोलकाँट जकाँ ढेसर जल्दी नइ होइत छै ।
प्रदेश दू अन्तर्गत ई बनस्पतिय झार चुरेक्षेत्रके मैदानीभागमे पानी नइ लागबाला स्थानमे अधिक होइत छै । एकर पात अण्डकार भालाकार होइत छै । फूल सम्तोला रङ्गके होइछै जे बेसी आकर्षक होइत छै । तैँ एकरा श्रृंगारिक फूल सेहो कहल जाइत छै ।
वर्षाऋतुके समय बीज जन्मैत छै आ पुषस’ फागुन महिनाधैर फूलाइत रहैत छै । बैशाखमे ढेसरमे बीज भ’क’ पकैत करिया जाइत छै आ झार सुखाक खैस परैत छै । रक्त गुम्मा झार आकाश दिश एकदम्म खड़ा भगैत,नमरैत रहैत छै । पातर झार होइतो १०स’२५ फिटधैर खड़गर नम्हर होइत छै । एक फूल ढेसरीयाकाँटजकाँ होइत छै ; जेना गुम्माके होइत छै । गुम्मा जकाँ इहो होइत छै मुदा गुम्मा एक-दू फिट धैरके झा र मात्र होइत छै , जाहिमे उजरका फूल लगैत छै । अइमे सम्तोला सनके ललियाल फूल होइत छै । तहि दुवारे ‘रक्त गुम्मा’, ‘बृहत्त गुम्मा’ वा ‘बड़की गुम्मा’ कहल जाइत छै ।
रक्तगुम्मा कफ बात शामक, दुर्गन्ध नाशक गुणयुक्त बनस्पति छै । रक्त शुद्धि, यकृत् विकार, पक्षाघात, दाद खाज खुजली जेहन रोगमे एकर आयुर्वेदिक उपचार पद्धतिस’ मानस्वास्थ्लेल प्रयोग कएल जाइत छै । कोनो तरहके विष उतारबाला, श्वांश,घाउं-फोंसरी, ठीक करएबाला गुण रक्त गुम्मा विद्यमान होइत छै । एकर आन्तरिक आ बाहरी दूनु तरहे प्रयोग कएल जाइत छै ।
मुख रोग,(मूँहमे हुअबाला अनेक तरहके रोग), नाशा रोग, अजिणर्, मलेरिया, विषमज्वरके ठीक करब लेल बहुउपयोगी बनस्पति रक्त गुम्माकेँ मानल गेल छै । हमरासभके देश-समाजमे एहन महत्वपूर्ण बनस्पति होइत छै । मुदा दुर्भाग्य एकर उपयोगिता नइ सरकार कपाबैत छै आ नइ समाजके आमलोकके ओतेक जनतब छै । एतेक धैर जिला बनस्पिति कार्यालय धनुषाके तथ्यांकोमे एकर नाम नइ छै । हम(उपेन्द्रभगत नागवंशी) अपन छत्त पर एकर झार लगाक एकर महत्वाकेँ दर्शाबके काज कएरहल छी । शब्द/चित्र-उपेन्द्रभगत नागवंशी
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