जनकपुरधाम । सनातनधर्म मानबाला समुदायलेल अङ्गशुद्धि, मन सुध्दि हेतु कातिक महिना बडबेसी महत्वपूणर् महिना मानल जाइत छै । तहि दुआरे कातिक महिनाके पूणर्िमादिन लोक कमलास्नान क’क’ तनमन पवित्र करैत छै । दान पुण्य कए उसासी परम्परा निमाहैत छै ।
अइसाल कातिकी पूर्णिमा कमलास्नान मङ्गलदिन पड़ल छै । मङ्गलेदिन साँझमे चन्द्रग्रहण सेहो लाइग रहल छै । ग्रहण सांझुक पहर ५. ११ बजेस’ ६.३४ बजेधैर ग्रहण रहत ।
ग्रहण स्पर्श समयस’ उग्रास समयधैर लोक पवित्र जलाश्य कातमे रहत । तहि दुआरे एहिबेरक कमला स्नान आओर महत्वपूर्ण छै ।
प्राचीन मिथिलाके राजधानी जनकपुरधामस’ जुड़ल कमलानदिमे आइमङ्गल दिन कार्तिक पूर्णिमाके लोकधर्मका पालनकर्ता गृहस्तआश्रमके लेल (महिला-पुरुष) भिन्सरे स्नान पुजालेल कमलाधार कात पुंगलगेल छै ।
कमला नइ जासकलसभ जनकपुरधाम गङ्गासागरमे स्नान क’क’ क्लेश मुक्त होइत छै । ‘कत्तिकी पूर्णिमा कमलास्नान’ मिथिलाक्षेत्रके नवका पुजन प्रथा नइ छैक । अध्यात्मिक दर्शन, लोक विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, श्रृति परम्परा समेत एीहमे सम्माहित छै । गम्भितरता पूर्वक अध्ययन क’क’ देखलापर सहजतास’ ईबात बोध होइत छै ।
कमलास्नान क’क’ अपन ईष्टदेवके श्रद्धापूर्वक ध्यान,पुजा-पाठ कए भूतकेँ भगाएब काल-कंलक हटाएब उपक्रम कएल जाइत छै । भूतउतार मेला वा भूतमेलाके रुपमे किछुतत्व प्रचारित करैत छै । मुदा कमला स्नान भूत मेला नइ छै ।
दैहिक क्लेश,पारिवारिक क्लेश, सामाजिक क्लेश आदि सबप्रकारका द्वेश हटाबके मूल आश्यकेसाथ मिथिलावासी कमलानदीकेँ माता तुल्य प्राणदायणी देवी माइनक पुजा कएल जाइत छै ।
आइ जे छै काइल्हखन ओ नइ रह’ सकैए ! जे रह नइ सकत ओहो बात-विषय मानवीय जीवनमे स्मरणके रुपमे रहिजाइत छै । चाहे ओ कोनोप्राणि जनइके बात होए, प्रकृति प्रदत् विषय होए अथवा कोनो बस्तु जीव-जन्तु वा स्थान विशेष किएक नइ होए ।
बितलबात ‘भूत आ काल’के बात भजाइत छै । ओही भूतकालकेँ नेपालके मिथिला, भोजपुरा, थारु आदि लगायतके समुदायमे संस्कारिक संस्कृति बनल छै । भूत आ कालकें हटाब लेल वा भगाबलेल तनमन शुद्ध राखब हेतु बहन्तु पवित्र जलधारामे स्नान करब एवं देव-पीतरकेँ गोहराएब सनातनी लोक परम्परा रहैत आएल छै ।
एहि लोक परम्परामे धमियौन, महराइ टेरब हा….हु….करैत, हाकबाक देब आ गणतव्यधैर जाएब कारनी मेटाएब विश्वास खाशक गृहस्त आश्रमके लोकमानसमे रहैत आएल छै ।
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