सीमाञ्चल समदिया,
शब्द/चित्र—उपेन्द्रभगत नागवंशी
सम्पूर्ण मिथिलाक्षेत्रमे ‘जीतिया’ पर्व हर्षमय रुपमे पतिवर्ता नारीसभ मनाबलेल बुधदिन ‘नहाय-खाय’ बिधिस’ पर्व शुरु कएलक ।
जितियापर्वकेँ शुरुवात नहायखाय दिन पर्वकरबाली नारीसभ नदी, तलाब पोखरि आदि जलाश्यस्थलमे जाक’ नहाइत छै । नहाय लेल आजुक दिनमे साबुनकेँ प्रयोग पबनैतिन नइ करैत छैथ । कडू तेल आ तेल पेड़लाबाद शेष रहल ‘खरी’ स’ माथ धोइत छै । तकराबाद जलाश्यस्थलमे घिउरा वा बिकल्पमे झिमनीके पात पर तेल-खरी चढ़ाक अपन पुर्खा-पितरकेँ नामस’ पुजन करैत छै ।
सन्तानके दीर्घ आयु जीवन पर्यन्त सुख समृद्धि बनल रहे, धन नइ बंश बृद्धि होइत रहे, परिवारमे शान्ति बनल रहे ओहन कामनासंग जितियापर्व मिथिलानी नारीद्वारा मनाओल जाइत छै । अइबेर बुधदिन तेलखरी चढ़ाक जितियाकेँ नहाखायस’ ब्रत शुरु भेल । शुक्रदिन भिन्सरे चुरा-दही, अमोट, गूड़, केराउ, खीड़ा चढ़ाक पारन करैत ब्रत समापन होएत ।
जितिया वैदिक शास्त्रीय पर्व नइ छै । हँ पुराणमे किछु चर्चा आएल छै । तथापि एकर विधि-विधान प्रयोगिक सामग्रीकेँ देखला पर जितिया जनजातिय विधान युक्तकेँ बिशुद्ध लोकधर्मी पर्व छै, ओ बोध होइत छै । ओना आजुक समयमे बहुत राशे विभिन्न वर्ग समुदायक महिला ई पर्व करैत छैथ । ककरो कोनो रोक नइ छै, आ हुअको नइ चाही !
जितिया पर्वमे प्रमुख रुपस’ पबनैतिन साकाहार महिला ‘मडूवा-कोदो’के रोटी, नोनीके साग खाइत छै । मांसाहार खायबाली महिला मडूवाकेँ रोटीसंगे छोटकी माछ खायी छैथ । तेल-खड़ीस’ माथ माजैत नहाइत छैथ । साबुनकेँ प्रयोग नइ करैत छैथ । देव-पित्तरके नाममे पुजा करब हेतु घिउरा वा बिकल्पमे झिमनीके पात प्रयोग करैत छै । तेल आ खड़ी नहाय खाय दिन जलाश्यस्थलमे देवतापित्तरके चढ़ाक उपवास बैसैत छै । ३६ घण्टाकेँ कठोर उपवास, जाहिमे पाइनधैर नइ पीबैत छै ।
जितियामे पाइन पीयब त’ दूर धूकधैर नइ घोंट सकैए । जौं धोखोस’ घोंटागेल त’ जितिया खरजितिया भजाइत छै । पित्तर-पित्तराइन पिता जाइत छै आ तेकराबाद पबनैतिन कहियो नइ पाबैन कसकैए तेहन ब्यवधानी सामाजिक व्यवस्था कायम र्छै । पुजाके समापन माने पारन दिन चुरा-दही केराउके अंकुरी चढाओल जाइत छै आ प्रसाद रुपमे ग्रहरण कएल जाइत छै । तकराबादे आन पकमान ग्रहण करब काज करैत छै । निराहार बैसबस’ पहिने भोररबामे सेहो चुरा-दही आ अंकुरी चढ़ाओल जाइत छै ।
प्रश्न उठैत छै अइकठोर व्रत ‘जितिया’के तिनदिना उपवासमे देहमे पानी , ग्लुकोज, बिटामिन्स् तागत आदि कोना आबैत छै । कत’ स’ देहके पूर्ति होइत छै ? तेल-खरी ओहो घीउरे पात पर किएक चढाओल जाइत छै ? जखन कि आओर बहुत राश महत्वपूर्ण पर्व-त्योहारमे घीउराके तिमन खायब बर्जित रहैत छै । लत्तीके छाहरोमे चलब अपसगुन मानल जाइत छै । मुदा जितियामे शुभ किएक मानल जाइत छै ! एकर उत्तर खोजैत गेला पर, एकर पुजा विधानमे लोक विज्ञान सम्माहित रहल देखाइत छै । आधुनिक आहार शास्त्रीके सेहो चकित करब जोकर छै । जे खाद्य सामग्री खाइत छै आ जे वस्तु प्रयोग कएल जाइत छै ओ सभ मानहितकारी विशेष गुणदायक प्रदायक खाद्य बस्तुसभ छै । चाहे ओ मडूवा हो, नोनी साग होए, दही चुरा अमोट होए !
मडूवा-कोदो— मडूवा अत्यन्त पोषक खाद्य होइछै । अइमे प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम, फासफोरस, वसा, कार्बोहाइडे्रट, खनिज पदार्थ, बिटामिन ‘ए’,‘बी’ अत्याधिक मात्रामे रहैत । स्टार्च, एमिनो अम्ल आदि सेहो रहैत छै । आयुर्वेदीय गुणकर्म अनुसार कोदोमे मनोवेग शामक एवं मुत्रकेँ बान्हीक राखब क्षमता होइत छै । पित्त एवं त्रिदोष शामक, तृप्तिकारक, दाह नाशक, कफबद्र्धक, मूत्रल तथा शोधक होइत छै । समान्य दौर्बल्यतामे हितकर बल प्रदायक काज देहमे करैत छै । जितिया करएबाली महिला जौं कोदोकेँ रोटी खाइत छै त’तनाव थकान कमजोरीके अनुभूति नइ होइत छै । प्यास आ भूख दूनु शान्त भ’क’ सुशुप्तावस्थामे रहैत छै । दाह-जलन गैश बनब जेहन काज पेटमे नइ होइत छै, पेशाब सेहो नियन्त्रित रहैत छै ।
नोनी साग— नोनी सागमे प्रोटीन, कोरोटीन, कार्बोहाइड्रेट,शर्करा(ग्लुकोज), बिटामीन-‘ए’,‘बी’के प्रचूरता रहैत छै । एकर अतिरिक्त नोनी सागमे सोडियम, पौटेशीयम, मैग्नेशीयम, आर्गेनिक अमल, निकोटिक अमल, आक्सेलिक अमल सेहो पायल जाइत छै । आयुर्वेद अनुसार नोनी-‘‘ कफपित्त शामक, दीपन, अग्निमांद्य, ग्रहणी, गुल्म, प्रमेह, अतिसार, शोध, श्वांस-काश, आ विष रोधक होइत छै । जाहिस’ देहमे कफ-पीत्तके शान्त कएने रहैत छै । अल्परक्त शर्कराकेँ दूर करैत, देहकेँ उर्जावान बनाक शिथिलता दूर करैत छै । अपरिस्कृत पोलुशनस’ सेहो नोनी बचबैत छै ।
दही-चुरा-गूड़-मीठ्ठा—दही चुरा मीठ्ठा मिश्रित खाद्यय सम्सीतोषक पोषक होइत छै । गरिष्ठ भोजन होइतो स्वादिष्ट आ पोषण दैत छै । देहमे अल्कोहलीक अभावपूर्ति करैत छै । ग्लुकोज, जल, चिकनाई, गर्मी बराबर राखबमे सहयोगी बनैत छै । चुरा गमरी धानकेँ अति उत्तम मानल जाइत छै । अहूपाछा पैघ लोकमनोविज्ञान नुकायल छै । गमरी गर्भेमे पाकबाला धान होइत छै । बाहर कोनो चिड़ै-चुनमुन वा किट फतङ्गा सेहो बैस नइ पाबैत छै । पूmल, दानासभ गर्भेमे तयार भ’क’ पाकैत छै । तौ विशुद्ध शुद्ध खाद्य होइत छै ।
घिउरा-झिमनी— अनाक्सीकारक क्रियाशिलता प्रदर्शित करबाला गुण घिउरा-झिमनीमे विद्यमान रहैत छै । कबकरोधी, जीवानु नाशक होइत छै । केहनोस’ केहनो पीड़ादायी शोथ (पूलतुम्मा भेल)के शान्त करैत छै । सभस’ महत्वपूर्ण बात छै घिउरा स्तन्यबर्दधक होइत छै । कफ आ थूक आइबक मुँहकेँ प्रदुषित करत ओइस’ पहिने ओइके निमूलताकें गुण बिद्यमान रहैत छै । श्वांश प्रश्वांसके मादे पातकेँ गन्ध पबनैतिनके नाक-मूँहस’ अन्तकरणमे जाइत छै ओइस’ एकप्रकारक तरलीय पदार्थ जल-थूक-कफकेँ मूँहमे विकसित नइ हुअ दैत छै । तैँ आन सब पाबैनमे बर्जित मानलगेल घिउरा झिमनीकेँ पात अइमे शुद्ध मानल गेल छै । तकर एकटा कारण इहो छै । घिउरा स्तनबृद्धिकारक होइत छै । जे महिलाकेँसौन्र्दके आकर्षनक केन्द्र कहाइत छै । ओ आकर्षण कायम रबरोबर रहे एहो बोध अन्तर निहित छै अइपर्वमे ।
खरी-तेल-अंकुरी—जितिया जाहि समयमे होइत छै ओ समय पीतरपक्ष कहाइत छै । अइ समयमे पुरुष वर्ग अपन पुर्खा-पित्तरके जलाशय स्थलमे जाक’ एकपखधैर जलतर्पण करैत दिवंगतप्रति नमन बन्दन करैत जल चढ़बैत छै । एकप्रकारस’ बैकुण्ठवासी पूर्वजकेँ जल पीबैत आहलादित होइत छै । अन्तमे पीण्डदान करैत एकवर्ष लेल विश्राम लैत छै । ततै महिलासभ सेहो अपन पुर्खा-पित्तरकेँ जितिया मादे जलतर्पण करैत पुजा करैत दिवंगतप्रति श्रद्धा-सुमन अर्पण करैत । सन्तती सुख कामनाक आश ल’क’ जीवनमे आगु बढ़ैत छै । ओ सत्य प्रेरणा पाबैत छै ।
सनातनधर्म मानबाला समुदायमे प्रायः सभपुजा आकार रुपमे कएल जाइत छै । मुदा जितिया निराकार पुजा छै । सन्तानके दीर्घ जीवन एवं दामपत्य सुख हेतु मनाओल जाएबाला बात कहल जाइत छै । तथापि ई मुख्यतः श्राद्धकर्म अन्र्तगतेकेँ पुजा विधान छै जे निराकार रुपमे कएल जाइत छै । जेना छैठमे सू्रर्यदेवकेँ , चौरचनमे चन्द्रमाकेँ, घड़ीमे घर गोसांईकेँ साक्षी राइखक पुजा विधान पुरा कएल जाइत छै । तेना अइमे नइ होइछै । बिलकूल निराकार पुजा होइत छै ।
पुरुषवर्ग पन्द्रह दिन धैर जलतर्पण करैत छै । चाउरकेँ पिण्ड बनाक दान करैत जलमे विर्सजन करैत पुर्खाके नमन बन्दन करैत छै । तहिना महिलासभ जलके स्थान पर तेल आ चाउरके पिण्डकेँ स्थान पर खरी लैत छै । खरीकेँ पीण्ड जकाँ घरकेँ जतेक मरल महिला रहल तिनकासभकेँ नामस’ ततेक ठाम खरीकेँ पीण्ड ध’ क’ तेल चढ़ाक स्मरण पुर्खा-पित्तरकेँ करैत छै । चुरा दही सेहो ओहि हिसाबस’ उपवास बैसबस’ पहिने राइतके चारिम पहरमे आ पारण दिन चढ़ाक समापन करैत छै । इहो एकप्रकारके पिण्डदाने छै ।
दोसररुपमे कहल जाय त’ पुरुष प्रभूत्व समाजमे महिला अधिकारकेँ सुरक्षा अइ जनजातिय लोकपर्व मादे सुरक्षितो कएलगेल बोध होइतछै । जखन कि बेद-पुरान-उपनिषद् महिलाकेँ पशुधन, भोग्या बस्तु मानने छै । ततै मिथिलाक जितिया ओ सभकेँ नकारैत वैदिक बन्धन मुक्त पर्वको रुपमे मनाबके काज समाजमे होइत आएल छै । ओ काबिले तारिफके बात छै । खोज अनुसंधानके बेगरता सेहो अइमे छै ।
ओना भविष्यपुराणमे एकर चर्चा भेटैत छै । ततकालिन भारतवर्ष अन्तर्गत एकटा ‘‘ राजा शालिवहानके राज्यमे एकटा महिलाके सातटा बेटा छल, जेकरासभकेँ दैत्य उठाक लगेल । राजा शालिकवाहनकेँ प्रतापस’ सातो बेटाकेँ दैत्यस’ मुक्ति भेटल । अहि कारण महिलासभ ओहि दिनस’ पर्व करए लागल !’’ एहन पौराणिक कथन छै । जाहि कथाकेँ बेरबेर दोहराओल जाइत छै । सुनल जाइत छै, सुनाओल जाइत छै ।
शालिवहानकेँ ‘जिमतुवाहन’ नामकरण क’क’ राजाके संस्मरणमे उपवास बैसैत छै । कथा सुनैत छै आ व्रत शुरु करैत छै ।
जिमतुवाहनके नामकेँ आधारे पर बोलचालमे ‘जितिया’ अर्थात् जितक आएल अइ बोधकसंग जितिया नामाकरण भेल बोध होइत छै । लोकपर्व जितिया पितृपक्षमे मनाओल जाएबाला पर्वमे महिलासभ अपनेस’ अपन दिवङ्गत पितृकेँ जल-पिण्ड चढ़ाक श्राद्धकर्मक कार्य विधि पुरा करैत छै । ओ बुझल जासकैए । प्रतेक वर्ष लोकपर्व ‘जितिया’ आश्विन कृष्णपक्ष सप्तमी तिथिस’ आरम्भ होइत छै आ नवमी तिथिक समापन कएल जाइत छै ।
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