उपेन्द्र भगत नागवंशी । आइ सोमदिन भादव-०४ गते,२०८० साल नागपञ्चमी तिथि पड़ल छै । आजुक नागपञ्चमी दिन सनातधनधर्म मानबाला समुदाय नागकेँ पुजनकरैत पञ्चमी मनाबैत छै । एहि पुजनमे सर्प माने साँपके प्रमुख रुपस’ पुजा कएल जाइत छै ।
नाग प्रतिक मानिक साँपके चित्रके पुजन कएल जाइत छै । नागपञ्चमी भेला पछाइते सनातनधर्म अधिन मनाओल जाएबाला अनेक पर्व-उत्सवके सूरुआत होइत छै । अर्थात् सर्वप्रथम नागपुजन होइत छै, तेकराबादे परम्परागत आन-आन देवी-देवताके पुजन प्रथा आरम्भ होइत छै ।
प्रश्न उठैत छै जाहि साँपस’ लोक डेराइ छै, बिषदन्ती साँप प्राणिलेल घातक होइत तिनका फेर पुजा किएक करैत छै ? एकर ओजह छै, साँपके पुजिक नागपुजा करैत छै । जखनि की नाग आ साँपमे भिन्नता छै । एहि भिन्नताके बुझब आवश्यक छै ।
पुराणसभमे अस्सीकूलके नागवंश रहल चर्चा छै । स्वर्गके देवता इन्द्रके सार्थी नाग छल । नागवंशके पृथक संस्कृति प्राचीनकालमे छल, वर्तमानोमे छै ।
“ऋग्वेद”मे अहिवृत्त(नाग-सर्प)केँ वृत्तान्त छै ।
“तैत्तिरीय संहिता”मे नागपुजनके महत्व-वणर्न भेटैत छै । “माहाभारत”मे अस्सी प्रकारके नागकूलके वणर्न छै । जाहिमे ‘शेष’, ‘बासुकी’, ‘कर्कोटक’, ‘तक्षक’, ‘पद्य’, ‘महापद्य’, ‘शंखपाल’, ‘कुलिक’ प्रमुख नाग-वंशके वणर्न छै ।
“बिष्णुपुराण”मे ‘अनन्त’, ‘बासुकी’, ‘शेष’, ‘पद्य’, ‘कम्बल’, ‘अश्वतर’, ‘धृतराष्ट्र’, ‘शंखपाल’, ‘कालिया’, ‘तक्षक’, ‘पिंगला’ आदि नागकेँ देवता मानलगेल छै । एहि बिष्णुपुराण अनुसार एकसमय भूतलस’ पृथ्वी-लोकपर नागवंशके अगुवासभ अबैत छलाह !
“हरिवंश पुराण” बिष्णुपर्व अनुसार वर्तमान अरबसागरके एकटा द्विपपर नागराज ‘ध्रुव वर्मा’के शासन छल । जिनकर पुत्रीके वियाह महाभारतके प्रमुख नायक श्रीकृष्णके पूर्वजस’ भेल छल ।
अथर्ववेदमे-श्र्वेद्, स्वज, पृदकि, कल्माष, ग्रीव, तिरचस्जी नामक उल्लेख छै । चित्तकोबरा (पृश्र्चि), करिका फनियर(करैत), घासरंगा (उपतृष्य), पियरका (ब्रम), रङ्ग रहित (असिता-अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक, तबस्तु, आदिकेँ पुजबालासभ नागकूलक लोक कहाएत, वर्णन छै ।
एहिहेतु नाग-साँपके प्रजातिपर अपन-अपन कूलकेँ नाम राखलगेल, जेना तक्षकस’ तक्षककूल बनल । तक्षककूल राजा परिक्षितकेँ वध-हत्या कएलक । राजा परिक्षितके पुत्र ‘जनमेजय’ तक्षक नागस’ बदला लेलक । कतेको नागकूलक जनमेजय नाश कएलक ।
तेकराबाद मूलतः शेषनाग(अनन्त) नागवंश, बासुकी नागवंश, क्रकोटक (कार्कोटक) नागवंश, सहित मूलतः पाँचटा नागवंशीय कूलवंश परम्परा आगा जाक’ कायम रह’सकल । ताहिस’ नागवंशके आठकूल मादे कालान्तरमे मात्र पाँच कूल-मूलके प्रसंग भारतवर्षके आधुनिक इतिहासमे पाओल जाइत छै ।
पड़ताल कएलापर वेद-पुराण, धार्मिक, सांस्कृतिक ऐतिहासिक दस्तावेजसभस’ एकरपुष्टि होइत छै । संगेसंग दोसरदिश एक-दोसर बातकेँ काटैत, आ जोड़ैत भेटैत छै ! कारण सत्तालेल मार-संघारके खेरहासभ भारत-नेपालमे बड़बेसी भेल छै एवं सबटा घटनाक्रम बिवादित आ रहस्यमयी छै ।
गोस्वामी तुलसी दास रचित रामचरित्र मानसमे बेर-बेर ‘नाग’ नागवंशके प्रसंग अनेक श्लोकमे आएल छै । जाहिस’ नाग समान्य लोक नइ छल, सहज बोध होइत छै ! किछु श्लोकके उदाहण देखल जाए—
सीयाराम मय सब जग जानि । करौं प्रणाम जोरि जुग वानी ।
सम्पूर्ण जगतके सीता-राममय मानिक दूनुहात जोइरक प्रणाम करैत छी ।
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गन्धर्व ।
(रामचरित्र मानस-पृ.७,बालकाण्ड,श्लोक-१दोहा-७(घ) एवं श्लोक-१चौपाई-१ ।
अर्थात्- देवता, दैत्य,मानव, नाग, पंक्षी, प्रेत, पितर, गन्धर्व, खोबजा एवं सर्प निशाचर ! हिनकासभके हम बन्दना करैत छी । रामचरित्र मानस रचियता तुलसी दास प्रथम श्लोकमे सभकेँ ‘प्रणाम’ एवं निच्चामे ‘नाग’ सम्बोधन सम्माहित श्लोकमे ‘बन्दना’ करैत छी, कहैत छैथ । प्रणाम समान्य शिष्टाचार निमाहब वास्ते भेल । बन्दना विशेष बिश्लेषण भेल ।
माने नागकेँ गुणगाण बिनु कार्यसिद्धता नइ होब सकैए ! तेहन महत्व दर्शारहल छैथ । एहिस’ नाग महत्वपूर्ण आ प्रभावशाली समुदाय छल ओ तुलसी दासके उक्त श्लोकोस’ पुष्टि होइत छै ।
कहिहं परसपर बचन प्रीति । सखि इन्ह कोहि काम छबि जीती ॥
सुर नर असुर नाग मुनि माहीं । शोभा असि कहुँ सुनि अति नाही ॥
(रामचरित्र मानस-पृ.१२७,बालकाण्ड,श्लोक-२१९-३) ।
अर्थात्- जनकपुर भ्रमणमे रहल राम-लक्ष्मणके देखैत निहारैत छल । ओ प्रसंगमे लोक धैर्यस’ प्रेमपूर्वक आपसमे गप्प करैत छल ।
हे सखी ! ई त’ करोड़ो कामदेवकेँ सुन्दरता लेने छैथ । देवता, असुर, मानव, नाग, ऋषि-मुनि, सब श्रेष्ठजन; सभस’ सेहो हिनका(राम)बारेमे एहन सुन्दरताक वणर्न सुनमे नइ आएल ! एहिश्लोकस’ प्रष्ट भजाइत छै नाग जीव नइ मानवरुपी देवता छल ।
नाग पुजनप्रथा पुराण पर आधारित पुजा छै । पुराणअनुसार प्राचीनसमयमे नागसमुदाय सउंसे भारतवर्ष ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बङ्गलादेश, सिरिया, म्यानमार, भारत-नेपाल आदि) पर शासन करैत छल । नागवंशक पराक्रमक गाथा लोककण्ठक आधार तहुस’ बनल ।
नागकूलक नाग राजवंशक नम्हर परम्परा आ खिस्सा-पेहानी भारतवर्ष अधिनक देशसभमे लोककण्ठमे सुरक्षित छै पुस्त दरपुस्त हस्तान्त्रण होइत आएल छै । जाहिमे सनातनधर्मक प्रमुख केन्द्र नेपाल-भारतमे आइयो प्रमुख पुजा नागपञ्चमीक होइत छै ।
एहि दुनु देशके लोकगाथा आ विभिन्न खिस्सा पेहानीसभ अखनो समाजमे सुनमे अबैत छै । नागवंशमे ब्राह्मण, क्षत्री, बैश्य आदि समुदायसंग अन्य प्रान्तके लोक-समाज समेत सामेल रहैत आएल ।
नागवंशी भारत-नेपालक अनेको क्षेत्रपर राज कएलक । एहिकारणस’ गाम, नगर, स्थानके नाम संगेसंग व्यक्तिके नाममे सेहो ‘नाग’ शब्द जोड़ल भेटैत छै ।
अध्यात्मिक हिसाबस’ लेखाजोखा कएल जाय त’ नागवंश/नागवंशी समुदाय पृथ्वीपर पहिल समृद्ध,विवेकशील समुदाय बहराइत छै । देवोके देव महादेवके गड़ाके हार नाग, प्राणिसभके पालनहार देव बिष्णुके श्यन शैय्यामे नाग ! कृष्ण जन्म रक्षामे सामेल रहल ओहो नाग !
भारतवर्ष अधिनक विभिन्न राजा-महराजाके आसनी, मुकुट एवं श्यन शैय्यामे सुशोभित चिन्ह नाग । जैनमुनिके आशन उपर नाग, महात्मा बुद्धके आशनमे नाग, अनन्तभगवान,सत्यनारायण भगवान सहित कल्पित, अवतारी देवसभकेँ मुखाकृतिके पाछा छत्तर काढ़ने बिराजैत एवं जोगाबैत अवस्था दृष्टिगोचर होइत छै त’ देखाइत छै नाग !
अर्थात् नाग सबकालमे देवस’ दानवधैर, ऋषि-महर्षिस’ राजा सामन्तधैर्यके सहारा बनल छै ! प्रतिकात्मक रुपमे होए, अथवा वास्तिविक रुपमे नाग सबहक भललेल संगपुरुवा बनल रहल । ओहिस’ प्रथमपुजन नागके कएल जाइत छै ।
एहिके बेसी फरिछाबके दरकार नइ छै । तथापि उल्लेखित कथासभस’ सिद्ध होइत छै नाग/नागवंशके महत्व हरेक युग, काल-खण्डमे देवी-देवतास’ राजा-महाराजाधैरपर नाग-नागवंशक छत्रछायां रहल ।
तथापि नाग ओकर वंशके अथवा नागके मानबाला वंशके दुरावस्था किएक भेल ? अथवा किएक कएल गेल ? ई तथ्यगत घटनापर खोदन-बेदन, परेखन कएल जाए चाही । सार्थक विवेचना होबक चाही । हमरा बुझल अनुसार वर्तमानधैर एहन महत्वपूर्ण काज भेवे नइ कएल । नेपाली परिवेसमे त’ आरो किछु खोजाहैट आ लेखन नइ भेल छै ।
‘महाबग्ग’ जातकमे “विदेह राज्य एवं राजा ‘शंखापाल’बीच युद्ध भेल छल”! विदेह राज्यक तात्कालीन राजा शंखापाल एवं उत्तरी पञ्चाल राज्यक चुलानि ब्रह्म दत्तबीच भीषण संग्राम भेल प्रसंग भेटैत छै ।
‘शंखापाल’ नाग छलाह, नागवंशक नरेश छलाह । प्राचीन विभिन्न नाममादे एकटा नाम ‘शंखापाल’ नागके सेहो उल्लेख छै । शंखापाल प्राचीन मिथिला नरेश छलाह ।
एहिस’ प्रमाणित होइत छै प्राचीन विदेह राज्यमे सेहो नागवंशीय शासन व्यवस्था कायम भेल छल । जाहि बातक आश्य सर्जक डा.राजेन्द्र विमल लीखित ‘मिथिलाको इतिहास, संस्कृति र कला-परम्परा’ नामक पुस्तकस’ समेत भेटैत छै ।
जनकपुरक्षेत्रमे प्राचीनकालस’ नाग वनवासी जनजातिय-समुदायके बसोबास छल । एकर संक्षिप्त विवरण भेटैत छै लेखक डा.पी.वी.रंगानाथन्नकेँ ‘मध्यदेशका सांस्कृतिक परम्परा और इसके नायक’ नामक कृतिमे ।
जनकपुरधामस’ सात किलो मीटर दक्षिण वर्तमान ‘नगराइन’ नगर पहिने घना जङ्गल छल । “त्रेतायुगमे शिरध्वज जनककेँ कालमे राजधानी नगर मिथिलापुरीके जनकपुरीधाम समिप घनघोर वनक्षेत्र ‘नागारण्य’ छल । जतह बेर-कुवेर ऋषि, महर्षि जनक एवं हुनक सान्ध्यितामे आएल रहल बसल राजा आदिसभ ध्यान एवं एकान्तबास हेतु विराजैत छलाह ”.!
महाभारतकालमे एहि नागारण्य घनघोर जङ्गलबीच नागजातिय लोकके बसोवास छल । वर्तमान मणियारी नागराज ‘मणिमान’के राज्याश्र छल । एहि आधारपर वर्तमान नगराइनके नामाकरण भेल बोध होइत छै ।
नाग एवं आरण्य ! दुनुके जोडि़क ‘नागारण्य’ भेल । संस्कृतमे आरण्यके अर्थ जङ्गल-वन होइत छै । नागक बास योग्य जङ्गल नागारण्यस’ परिवर्तित होइत अखनु ‘नगराइन’ भेल छै । तहिना नागवंशीय नेरश मणिमानकेँ स्थल रहलास’ बोलचामे मणियारी भगेल ओ मानल जासकैए ।
पौराणिक कथा अनुसार भूमि भितर पाताललोकमे एकस्थानमे नागलोक कायम छल । पाताललोकमे मानवाकृतिक लोक रहैत छल,जाहिकेँ नागलोक सम्बोधन कएल जाइत छल ।
नदी-पोखरि, झिल-झरना, सागर-समुद्र, गगनलोक, पाताललोक, देवलोक, सर्वत्र नागवंशके निवास छल । प्रतेकवर्ष साओन शुक्लपञ्चमी दिन नागोत्सव होइत छल । जाहिमे सामेल होबलेल नागलोकस’ ‘बासुकी’, ‘तक्षक’, ‘कालिया’, ‘मणि भद्रक’, ‘धृतराष्ट्र’, ‘ऐवक’, ‘कर्कोटक’, ‘धनंजय’ पृथ्वीलोकपर आबैत छलाह ।
नाग महोत्सवमे आएल नागवंशीय अगुवा देव-पुरुषसभ पृथ्वीवासीकेँ अभयदान प्रदान करैत छलाह । नागवंशीय अगुवा नाग-पुरुषसभ भूतल, हिमालय, आकाश, देवलोक, नदी-ताल सरोवर सबक्षेत्रमे निवास करैत छलाह ।
एहिस’ शिद्ध होइत छै अनादि कालस’ नागवंशके अस्तित्व संसारमे छै । ताहिस’ देवी-देवतासभकेँ संगेसंग नाग-साँपके वणर्न्न भेटैत छै । आर्यदेव बिष्णुकेँ विश्राम-शैय्या शेषनागके छै ! अनार्य देव महादेव(शिव)के गड़ाके हार ‘बासुकी नाग’ बनल छै । एकर अतिरिक्त जैनधर्म, बौद्धधर्मके देवतासभके माथपर सेहो अनन्तनागके छत्र-छायां छै ।
शास्त्रसम्मत नागवंशक कथाके कोना भ्रमाक समाजमे छिडि़याबके काज भेल, तेकर उदाहरण स्वयं ‘महाभारत’ ग्रन्थ छै । महाभारत आदिपर्वके अनुकर्मणिका पर्वके श्लोक-४-११ धैरमे नाग-सर्पयज्ञ सम्बन्धि कथा-वणर्न छै । ओ कथासार किछु आउर तथ्य उजागर करैत छै एवं समाजमे प्रचारित आ लोकजीवनमे सम्माहित कथा-विस्तारमे भिन्नता छै । उल्लेखित कथा-भिन्नताके गम्भिरतापूर्वक बुझब आवश्यक छै ।
नागवंशक एकस’ एकयोद्धा राजा आदिकेँ कालान्तरस’ वर्तमानधैरके अवस्थामे बिस्मृत करब खेल होइत रहल । आरम्भिक समाजमे नागवंशीसभकेँ योगदान अतुलनीय मानलगेल छै ।
आर्यावत् सभ्यताकेँ आरम्भिक वीर योगदानीसभमे नागवंश सेहो प्रमुख रहल । एहिसत्यकेँ बुझबलेल सभ्यताक आरम्भधैर पुंगहि पड़त । तत्कालिन समय, विषय-बातकेँ गहिंराइमे उतैरक गम्भिर अध्ययन आ अनुशीलन करहि पड़त ।
उपर-झापर ताका-झांकी, उपरा-चपरी कएलास’, नाग-साँपकेँ एक्कहि माइन लेलास’, नागपञ्चमी दिन नागपुजन कए लेलास’, विषधरजीव साँपकेँ नागदेव कहि देलास’ मात्र नागकूल-वंश परम्परा एवं नागजाति,जातिय संस्कारकेँ नइ बुझल जासकैए ! एहुलेल गम्भिर चिन्तन एवं सार्थक विवेचनाके दरकार छै ।
कृष्ण एवं नागजातिय समुदायबीचके द्वन्द संघर्ष बहुत नम्हर समयधैर रहल । हस्तीनापुरके बिभाजन पछाइत इन्द्रप्रस्तनगर बसाबलेल नागवंशके खाण्डव वनस’ उजाइरक भगाबके काज भेल छल । ओकराबद नागजाति समुदायक लोक यत्रतत्र छिरियाक रहपर बाध्य भेल ।
महाभारतकालीन अवस्थामे जखनि द्वारिकाधीश कृष्ण ८४ वर्षक आयुमे जनकपुरधाम पधारने छलाह । ओहि समय नागवंशीसभकेँ भगाएब काज फेर भेल । एहितरहें नागारण्यस’ भागिक नागजातिय लोक आओर घनघोर जङ्गलीक्षेत्र वर्तमान महोत्तरी जिलाके बलवा-सरपल्लो दिश पुंगल ।
बलवाके प्राचीन नाम ‘बलभद्रक’ एवं सरपल्लोके ‘सर्पलोक’ अर्थात् नागलोकस’ जानल जाइत छल । बलवा-सरपल्लो नामाकरण सम्बन्धमे इतिहास एवं संस्कृति अध्येता शिवेन्द्रलाल कणर् एवं नारायणप्रसाद रिमाल लीखित ‘‘जनकपुरधामका मठ-मन्दिरहरु एक खोजमूलक’ कृतिमे एकर संक्षिप्त चर्चा आएल छै,तहुस’ संकेत भेटैत छै ।
वर्तमान तिरहुतिया गाछी जतह पहिने बैलहाट लगैत छल, ओहि स्थानपर एवं विराजमान जानकी मन्दिरक्षेत्रमे नागवंशीसभ बहुसंख्यक छल । मिथिलामे नागकेँ बिषहर कहल जाइत छै । विषहरा पोखरि एवं पोखरिके पश्चि मोहार पर नाग (विषहरा) मन्दिर छै ।
जानकीमन्दिरकेँ चारुकात अखनो सभस’ अधिक नागवंशी-तमोलीय जातिके घरदुवार छै । एहिबातक बोध करबैत छै । प्राचीन समयस’ वर्तमानधैर नागजाति समुदायक लोक नागवंशीसभकेँ अस्तित्व जनकपुरधामक्षेत्रमे छल आ छै । मात्र दृष्टि ओहि मुताविक फरिछाक देखब जोगर होबक चाही ।
एहितरहें महोत्तरी जिलाक जलेश्वर स्थित महादेवमन्दिर लगपासमे सेहो प्राचीनकालेस’ नागवंशीय जाति समुदायक बसोबास छै । तेकर कारण छै जलमे इश्वर ‘जलेश्वर’ स्थान ।
महादेवसंग नाग-नागवंशक नह माउंसके सम्बन्ध सभ्यताक आरम्भहिस’ रहैत आएल । गण व्यवस्थामूलक कविलायी समाजमे ‘शीवगण’संग नाग सम्माहित छल ।
मिथिलामे किछु समुदायद्वारा ‘मधुश्रावणी/मुसरामनी’ पर्व मनाओल जाइत छै । मिथिलानी नवविवाहिताद्वारा साओन महिनामे एकपख मुसरामनी पुजन कएल जाइत छै । विवाहके पहिलवर्षमे नवविवाहिता मुसरामनी पुजन १५ दिनधैर करैत छथिन ।
एहिमे विषहर देवताके रुपमे नागदेवकेँ विभिन्न स्वरुपके पुजन करैत अन्तिम दिन टेमी दैत व्रत कएनिहारि नारीक ठेहुन दगैत समापन कएल जाइतm छै । पूणर्तःकामकलास’ सम्बन्धित शास्त्रीयता सम्माहित लोकधर्मी पर्व छै ।
लोकमान्य सिद्धान्त अनुसार प्रायःदिन कोनो नइ कोनोरुपमे नागदेवके अनिवार्य पुजन कएल जाइत छै । कामकला सम्बन्धि लोक-मनोविज्ञानके शास्त्रीयता, पौराणिकता विधिविधान समावेश कए एहिरुपमे चित्रित कएलगेल छै । तेकरे आधुनिक स्वरुप ‘हनीमून’ छै ।
मुसरामनी पर्व-विधानमे देखल जासकैए । पन्द्रह दिनधैर मुसरामनीमे नवविवाहिता अप्पन सखी-बहिनफासंग हेंज बनाक बाध-बोनमे जाएब, फूल झाड़पात उखाइरक, नोइचक आनब आ घरके एककातमे कोन्ह बाडि़क पुजन करब !
एहिपुजन विधानमे प्रमुख देवता विषधर माने नागदेव होइत छथिन । विभिन्न रुपमे विभिन्न प्राचीन नामस’ विषधर नागके पुजन करब एवं कथा श्रवण करब काज कएल जाइत छै । नागके देवतुल्य मानिक पुजा-आराधना कएल जाइत छै ।
नाग कामुकताके प्रतिक, सृष्टि उत्पादनके प्रतिक, कामइच्छाके जागृतकर्ता देवके प्रकृतिक पुजन होइत छै आ विधकरी हरेक पुजन विधानके अर्थाभाव नवविवाहिताकेँ बुझबैत जाइत छै ।
पतिप्रेम, पत्नीधर्म, सन्तानोत्पादन, मातृत्व सुख, कूल-मर्यादा पालन, एक दोसर(नारी-पुरुष)बीच सहअस्तित्वक स्वीकारोक्ती, सामन्जस्यता आदि काजस’ नवसीख भेटैत छै ।
मधुश्रावणी पर्वक महत्व लोक बुझैत छै । परापूर्वकालमे सृष्टिके उत्पादन हेतु भूतलमे वास कएनिहार नागवंशीसभकेँ लगमे जाक’ सृष्टि निर्माणके तयारी विभिन्न देव, ऋषि-महर्षि करैत छलाह । ओहिके प्रतिपालन हेतु वीज छिटबाला नाग-नागवंश छल ।
दोसर रुपमे कहल जाए त’ प्राणियोमे श्रेष्ठ प्राणी मानवजन्मके योजना कार्यान्वितकर्ता, बरुवार, पराकर्मी, जीवठलोक भूतलवासी नाग छलाह । एहिरुपमे नाग, नागवंशीय लोक-देवके मान्यता छल । ओहि हेतु आइयो पुजल जाइत छै ।
लोकविधानमे शास्त्रीयविधान सम्माहित‘पोण्डरीक नामक यज्ञ-विधान कएल जाइत छै । जाहिमे लैगिंक कृयात्मक पुजन होइत छै ।’ एहि पुजनकेँ शास्त्रमे लिङ्गपुजा कहल जाइत छै ।
मुसरामनीमे कामुकताक प्रतिक नाग होइत छै । ओहिके प्रतिक माइनक कामकलाके पुजन विधि नव विवाहिता व्दारा पूर्ण कएल जाइत छै । आ विधकरी मादे सब सिखाएल जाइत छै ।
गौणरुपमे दीप-बत्ती लेशक टेमी देब लिंग-योनि छेदन कृयाकरब मानल जाए । एहितरहें मधुश्रावणीमे कष्ट एवं शुखानुभूति दूनु होइत छै ओ काम-कृया लोक विधान मादे कएल जाइत छै ।
नागवंशक मूलउत्पति स्थल सेहो हिमवत्खण्ड नेपाल मानलगेल छै, एकर बहुतराश प्राचीन साहित्य साक्षी छै । तहियाकेँ नेपाल उपत्यकामे नागवंशी सभ छै । ई जनतब भेलापर कृष्ण उपत्यका प्रवेश समेत कएलाह ।
इन्द्रप्रस्त राज्यस’ भागल नागवंशी नेपाल उपत्यकामे नागवंशीसभके गढ़मे त’ नइ जाक’ नुकाएल-बसल, ओ अभिप्रायस’ दलबलसंग कृष्ण ग्वालासभकेँ समूहसंग नेपाल उपत्यकामे प्रवेश कएने छलाह ।
कृष्ण जलमग्न अवस्थामे रहल नेपाल उपत्यकाकेँ चारुभैर नागजातिके लोक नागवंशीसभकेँ देखलाह गमलाह । जल निकासके काज कएलाह । कृष्णद्वारा कएलगेल जल निकासी कार्य पछाइत उपत्यका बसोबास योग्य भेल, नगरिय संरचना निर्माण होब लागल ।
कृष्णसंगे आएल गाय पालनकर्ता समूह ठमैकगेल । बादमे उपत्यकामे महिंसपालनकर्ता समूह प्रवेश कएलक । तेकराबाद उपत्यकाकेँ मूलवासी नागवंशीसभकेँ शासकीय प्रबृतिके गोपाल/महिंसपालवंशीसभ संग दीर्घकालधैर अड़ाइर चलैत रहल । जाहि क्रममे नागवंशीसभ स्वयं अपने पाछा हैटत गेल आ अन्यत्र बसल एवं छिरियाक रह’ लागल ।
नेपाली किछु विद्वान-“उपत्यकामे तिब्बतस’ आएल मञ्जुश्री नामक दार्शिनिकेँ चोभारस्थित पहाड़केँ कट कएलाहस’ जलनिकास भेल !” सेहो तार्किक विषय आएल छै ।
मञ्जुश्रीद्वारा जलनिकासी भेल होए, अथवा कृष्णद्वारा, एहिबातमे विवाद होब सकैए । मुदा, ईबात अकाट्य छै ‘नेपाल उपत्यकाके जलनिकास गोपालवंशी/महिंसपालवंशी अएला पछाइत भेल एवं ओहिस’ पहिने उपत्यका जलमग्न अवस्थामे रहल समयमे जलाशयके चारुभैर नागजाति समुदायक लोक नागवंशीसभ अत्याधिक संख्यामे रहैत-बसैत छल ।
ओहिसमयस’ नागजाति नागवंशी समुदायक लोक छिरियाएल तहियास’ छिरियाएले अवस्थामे देशक प्रायः हरेक ठाममे थोरबे संख्यामे छै मुदा छिरियाक रहैत आएल छै ।
नइ राज्य एहि समुदायके कोनो लेखा जोखा रखने छै नइ ई समुदाय अपनो चांइख राखैत छै । तैँ आदिम्वासी नागजाति नागवंशी समुदाय एवं एहि समुदाय अधिनके जातिसभ नेपालके जातिय सूचांकके गणनोमे नइ आबैत छै बिडम्बना एहन छै !
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