जनकपुरधाम । मिथिलानीसभकेव्दारा मनाओल जायबाला लोकपर्व ‘जीतिया’ शूरु भेल छै । आइ शुक्रदिन पर्वके पहिन दिन नहाय खायस’ ब्रत आरम्भ भेल छै । जीतिया आश्विन महिनाके कृष्णपक्षके अष्टमी तिथिक मनाओल जाइत छै ।
जीतिया सप्तमीतिथि दिन नहायखायस’ शूरु होइत छै । अष्ठमीके निखट्टे उपावास रह पड़ैत छै । नओमीतिके विधि विधानस’ स्नान ध्यान पुजन कएला पछाइत पारन कएल जाइत छै । प्राचीन जनजातिय लोकपर्व जीतियाके मिथिलाक्षेत्रमे महिलासभ विशेष महत्वकसंग मनबैत छै ।
मूलतः जनजातीय लोकपर्व जीतियापर्व पुत्रजनके दीर्घजीवन एवं दाम्पत्य प्रेमके एकनिष्ठता लेल मनाओल जाइत छै । जाहिपर्वमे अपन दिवंगत पुर्खाके पुजन करैत आशिष प्राप्तिके आश सेहो जीतियामे सम्माहित रहैत छै ।
सन्तानके सुस्वास्थ्य आ दीर्घायुके संगेसंग आकस्मिक घटनास’ होबबाला जनधनके क्षतिस’ रक्षा होए ओहो अभिप्रायः अइपर्वके मूलमे सम्माहित छै । प्रायः प्रत्येक जाति जीतियापर्वके विधि विधान कठोरतापूर्वक निर्वाह करैत छै ।
अनजल ग्रहन नइ करैत संगे कोनो काठि धैर नइ तोर पड़ैत छै । सागपत्र नइ खोंट पड़ैत छै । अन्यथा जीतिया खरजीतिया भजाइत छै । जाहिस’ अनिष्टता होब सकैत छै ।
अइबेर सप्तमी तिथि शुक्रक नहाय खाय, अष्ठमी तिथि शनिदिनके उपवास, रविक नओमी तिथि दिन सांझमे पाँच बजे पारन करैत ब्रत समापन कएल जाएत ।
राजा शालिकके पुत्र ‘जीमूतवाहन’ मे पुजा कएल जाइत छै । चुरा, दही खीरा, केराउ प्रसाद रुपमे चढाओल जाइत छै । नहाखाय दिन घिउरा पातमे तेल खरी चढाक अपन पीतरके पुजा करैत जल ते अर्पण करैत छै ।
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