देशक अवस्था पर किछु काव्य….

२०७७ आश्विन २, शुक्रबार ११:२३
सीमाञ्चल समदिया
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मतसुनता

दया अबैए देश प’ नइ अपनो पर
व्यवस्था भंगठौने छी
नेकी बिसरौने छी
परतर सभ दैए
एक दोसरकेँ !
देखैए सपना
गढ़ैए सपना
देखबैए सपना
फूरबैए बात,
बजैए फूइस
होइए फंसाद  !
नेता आ नेतघट्टा सभ ।

कानिती भोकासी पारि
होइए मोन तहिना !
कतबो डिरियाएब
कतबो छिडि़याएब
सुनत के, मनाओत के
सभ अपनेमे हरान ।

//

 

बुढ़बा

बुढ़बा बड़-बड़ाइत रहैत छल
‘टन्डेली’ नइ कर,
अइस’ कि होतौ !
देखै नइ छही, समय-साल
कमो-खटो टाका कमो
नइ त’ एक दिन भुक्खे मरबे !

कि करु ?
चोरी करु, डकैती करु
आ कि पाकेटमारी करु ?
नइ ! मेहनति कर
नेत शुद्ध राखिक,
इमान्दारीस’ कमो
मोन लगाक, धरम बचाक
काज कर !
देखीहें बरकत होएबे करतौ !!

चलु मानल अहींक बात
बड़ मोस्कीलस’ भेटल काज
करए लगलौं मेहनति
टुटए लागल गत्तर
हातमे आब’ लागल टाका
बड नीक ससरत जीनगी
बूढ़बोके छल सपना मुदा, कहाँ भरैए
नीकस’ पाँचो परानीके पेट !

//

 

ओझरी-पोझरी

सरकार बेंट छुटूवा
साहूकार भरए पेट-गल्ला
नेतघट्टा अलगाबए बेस कल्ला
घेंटकट्टा अघोषित जल्लाद
दमरी नइ छोड़ए, चमरी नोचए
कपांबए करेज ऋणिकेँ !

देशक अवस्था ओझरी-पोझरी
नीति-निर्माता बनल बैसल दलाल
विदेशी शक्ति, पूँजीपत्तीवादीकेँ टहलु
लोभे जाइत छी, पुक्की पारैत छी
लगैए डण्टा चुप भ’ जाइत छी
करी जौं कलोल केओ नइ सुनैए

घुरि आबैत छी, मोने मोन चिचिआइत छी
नइ सोंरि नइ पोडि़ अहिना छिछिआइ छी ।

परिवर्तन करए पड़तै,देशमे समाजमे
एतबे पर बस बहस छिरियाए
मोन नइ सम्हारब, नेत नइ सुधारब
चरित्र नइ बनाएब, थाह नइ पाएब
रहब बनल चुप्पा कसाई !

//
(उपेन्द्रभगत नागवंशी रचित ‘‘ कत’ छा हे…!’’ काव्य संग्रहस’)

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