सीमाञ्चल समदिया,
जनकपुरधाम । दशैंके शुरुवात घटस्थापन कएला दिनस’ शुरु भजाइत छै । एकर बहुतराश लोकमे बहुत राश अपन-अपन तरहके मान्यता छै । ओइ मान्यत अनुसार लोक घटस्थापन करैत दशैके शुरुआत पुजा-अर्चना, देवी-भगबत्तीकेँ प्रार्थणा,चढ़ौना आ खानपीन करैत मनबैत छै । समान्यतः घटस्थापनाके लोक घैल वा कटियामे कोनो पवित्र सरोवरस’ जल भैरक आनब आ पवित्र स्थानमे विधिपूर्वक कलश स्थापना क’क’ ओइ निच्चामे अमनिया माटि-बालुमे जौं छिटब । जौ जन्मलाबाद दशमदिन ओ जमराकेँ माथ पर राखब कानपर राखब, टीकमे बान्हब आ खोपामे सन्हियाएब, तिलक चानन श्रेष्ठ जनस’ लगबाएब आर्शिवाद लेब-देब करब एवं दशैं मनाएब, एतेक बुझैत छै ।
बस्तुतःहमरासभके अध्यात्मिक रुपमे सांस्कृतिक,परम्परा अनुसारके अनुष्ठानमे दशैंके विशेषतामे घटस्थापनाके मर्म अहिना बुझाओल गेल छै । दुर्गा भगबत्तीके प्रतिमा वा मूर्ति आगा अथवा कूलदेवता घरमे भगबत्तीके नामस’ घटस्थापन करब नौ दिनधैर दुर्गा भगबत्तीके पाठ करब, बन्दन ,अर्चना करब आ सुख समृद्धिके कल्पना करब सिखाओल गेल छै ।
भगबत्ती सभकेँ कल्याणकारी देवी होइ छथिन । मूदा सूक्षम रुपस’ देखला पर अइ अध्यात्म दर्शनमे परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यमान्यता भितरमे लोक मनोविज्ञान एहन नुकाएल छै जाहिस’ संसारके परिचित हुअ नइ देलगेल छै । जे लोक थोर-बहुत जनैत होएबो करत ओ दशैंके एहनो अर्थे पुजन होइत छै ताहिस’ सर्वब्यापि जनतब नइ दिअ नइ चाहैत छै । किएक त’ हमरसबहक समाज संस्कार आ संस्कृति तेहने हमसभ बनौने छी आ अपनौने छी ! जाहिस’ पहिचाइनक नइ बरु माइनक चलबमे बेसी भरोस करैत आएल छी ।
घटस्थापना
आब चली घटस्थापनाके मूल-विषय पर ! घटंस्थापन घटस्थापन ! घट एक प्रकारस’ घेंउट भेल । माटि बर्तनके घेउंट । कलश, घैल, कटिया जे कहल जाए तेकर घेंउट । घेंउटकेँ निच्चा घर पेट भेल जाहिमे जल भरल जाइछै । घटस्थापना हेतु कलश-कटिया, सरबा, माटि-बालु, जमरा जन्माब लेल जौ आ कलशमे जल भरल हुअ चाही मूलतः अइके आवश्यकता होइत छै । अइमे विधि विधान हेतु पान, फूल सोपारी अक्षत, चानन आदि अनेक सामग्रीके सेहो दरकार होइत छै ; समाइत अनुसार विधि प्रकृया अनुसार अनुष्ठानीक कार्य करैत एकर स्थापन कएल जाइत छै । मुदा जिनका नहियो जुड़ैत छै ओहनो समान्यस’ समान्य लोक कलश,जल आ जौ उपर क’क’ घटस्थापन कइए लैत छै । ई चलनसाइर कायम छै ।
दशैं नारी प्रधानता मूखी वैदिक पर्वोत्सव छै । जाहिमे लोक मनोविज्ञान सम्माहित छै । नारी आ पुरुषार्थके समिश्रणी पर्व छै । मुदा नारीशक्तिके दर्शाक, भक्ति याचना क’क’ पुरुषार्थ प्रमार्थके देखाब लेल ओकर भोग करबलेल घेंउटमे घेंउट जोरब आ सहकार्य सामजस्यता कायम करब तकर प्रतिक बीज जमरा होइत छै । जमरा जाहिके जन्माओल जाइत छै ।
कोनो बस्तु झारपात, वनबृक्ष आपरुप जन्मब आ जन्माएबमे बहुत अन्तर होइत छै । जन्माबके अर्थ छै सृर्जना करब आ सृर्जना अहिना नइ होइ छै । त्याग, तपस्या करए पड़ैत छै जाहिमे समय लगैत छै । घटस्थापना तेकरे प्रतिक छै । दश दिनधैर पुजा-पाठ करब एकप्रकारें तपस्या छै, । सभटा काज-धन्धा छोइरक परम्परा निमाहमे लागब, एक प्रकारके त्याग छै ।
दशैंमे घटस्थापना होइते दशहरा शुरु होइत छै , खुशीयालीके वातावरण चारु भैर गुञ्जयमान होइत छै । प्रकृति प्रसन्न होइत छै आ प्रकृति प्रसन्नतास’ मानवीय प्रसन्नताके लोक बोध करैत छै । घटस्थापनामे घट-घेंउटकेँ बेंउत जुड़ैत छै ।
जहिना जल भरल कलशमे सरबाकेँ घेंउट जुड़ैत छै । तहिना नर आ नारीके जोड़ब काज होइत छै । तखन प्रेम बढ़ैत छै । प्रेमस’ सिनेह कायम होइत छै । सहअस्तित्वके स्वीकारोक्ति भेटैत छै, आपसी सम्बन्ध कायम होइत छै जमरा जकाँ वीज छिटाएइत छै । जौं स’ जमरा अंकुरित होइत छै तेहने सिनेहक प्रतिक फल अंकुरित भ’क’ सन्तान सुख प्राप्त होइत छै । सृष्टिके निर्माण होइत छै ! कटियामे जल भरब सरबास’ घेंउटके तोपब तेकर प्रतिक छै ।
दुर्गा भगबत्तीके रोड़ी चन्दन, रक्तचन्दनकेँ तिलक चढ़ैत छै, जे बस्तुतः सोनिताएल रङ्ग होइत छै ।सोनित नशमे दौगबाला रङ्गके नइ ! बरु प्रसववेदना पछाइत अथवा महिलाके मासिकधर्मके समय बहाव हुअबाला सोनिताएल जकाँ रङ्ग होइत छै । सृष्टिके निर्माणरुपी पिण्ड फूटला पर सगौरव बहाव हुअबाला प्रकृतिक रङ्ग अइके मानल जाइत छै ।
ताहि हिसाबस’ देखल जाए त’ नारी मनोभावनाके कदर करब, ओकरा बहलाएब, फूसलाएब, प्रशंसा करब, मनाएब, आदर करब सम्मान देब आ तेकराबाद मान पाएब ! ओकर प्रतिनिधित्वकारी सन्देश अइमे नुकाएल छै । जब्बरदस्ती करब, इच्छा विपरित भोग करब ओ कोनो नारीके सोहन्ता नइ होइछै । चाहे ओ अपन अर्द्धाग्निए किएक नइ होए, ओ बर्तमानो समाजमे अपराध मानल जाइत छै । घट-घेंउट छै,—सहअस्तित्व स्वीकारोक्तिके, सहकार्यके, सामजस्यताके, समानताके, सर्वब्यापकताके, सर्वमान्यताके संकल्पित भावके घटस्थपना बोध करबैत छै, अइबातके बुझ पड़त ! बुझाब पड़त ! शब्द/चित्र – उपेन्द्रभगत नागवंशी
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