तराई–मधेश लेल वरदान साबित हुअ सकैए फल‘अंजिर’के खेती

२०७७ श्रावण ६, मंगलवार १४:०२
सीमाञ्चल समदिया

सीमाञ्चल समदिया

परिचय
अंजिर गुल्लरके फल जकाँ होइत छै । मुदा गुल्लरस’ पृथक गाछ होइत छै । गुलरके गाछ–पात जकाँ अंजिरके गाछ–पात नइ होइत छै । गुल्लरके पात–फल तोड़ला पर अथवा गाछकेँ कचला पर जेना दूध चूबैत छै तहिना अंजिरोकेँ गाछ–पात–फल तोड़ला पर दूध चूबैत छै । जेना गुल्लरके पूmल पूmलायत लोक नइ देखैत छै ,तहिना अंजिरकेँ सेहो पूmल लोक नइ देखैत छै सोझे फल देखाइत छै ।

फल भितर गुल्लरे जकाँ बीज–जट्टा रहैत छै । अंजिर फल कनेक पैघ–बड़का होइत छै । फलकेँ भितर बाहरकेँ बनौट गुल्लरे जकाँ होइत छै । बाहरी बनौट कनेक फरक होइतो अंजिरकेँ भितरका बनौट बीया अनमन गुल्लरे जकाँ होइत छै । अइ कारणस’ बहुत लोक ई भ्रममे रहैत छै गुल्लरे अंजिर आ अंजिरे गुल्लर छै । जखन कि एहन बात नइ छै दूनु दू फरक वनस्पति फल होइत छै ।

अंजिर गाछ ३०–४० फिट धैर खरगर पैघ–छोट आ मध्यम आकारके पर्णपातीबृक्ष होइत छै । जेना लताम, सरिफा, लुच्चीकेँ गाछ होइत छै तहिना ! अंजिरके पात त्रिकोणात्मक आ चौरगर एवं हस्ताकार (हातक आकारकेँ) सेहो होइत छै । उपरस’ खुरदुर्र १२–१५सेन्टी मिटर लम्बा आ १०–१८ से.मी. चौरगर पात होइत छै । गाछक छाल चिकन्न धूसर रङ्गके होइत छै । अंजिरमे वर्षात् पूर्वधैर फल लगैत पकैत छै ।

फलक आकार ३–५ सेन्टीमीटरके लम्बा हरियर बैगनी रङ्ग काँचमे रहैत छै । पकला पर फलकेँ रङ्ग पियरछहुन लताम सन होइत छै । पियरछहुन हुअ लगला पर डम्हाएल फलकेँ तोडि़क संग्रह कएल जाइत छै । रौदमे सुखाक राखल जाइत छै । सुखला पर महुवा, अमोटके रङ्ग जकाँ भजाइत छै । अंजिर फल पाकल डम्हाएल काँचो खायल जाइत छै मुदा मेवाके रुपमे अधिक दिनधैर सुरक्षित राखब लेल सुखाक फलकेँ दबाक चप्ता क’क’ भण्डारण कएल जाइत छै । बजारमे मालाजकाँ गांथल अंजिर फल बिक्री होइत छै ।

अंजिर उत्पादन हेतु भूबनौट
अंजिर दू तरहक होइत छै । एकटा जङ्गली आ दोसरका कृषितकार्य हेतु व्यवसायिक रुपमे लगाओल उगाओलगेल । जङ्गलीके अपेक्षा व्यवसायिक रुपमे लगाओल जाएबालाके फल आकारमे बड़का होइत छै । गुण आ स्वादमे दूनुके फल एकसमान होइत छै । गर्म जलवायुबाला क्षेत्रमे अंजिरकेँ खेती अधिक फल दिअबाला होइत छै ।

जाहि भूमिमे चूना–कैल्सियमकेँ मात्रा अधिका होए, ओ भूमि खेती हेतु उत्तम मानल जाइत छै । अधिक गर्मी परएबालाक्षेत्रमे अंजिर बेसी आ नीकस’ फलैत फरैत छै । एकर नीकस’ व्यवसायिक खेती क’ क’ बेसी आय आर्जन कएल जासकैए ।

अंजिर हमरासभकेँ देश नेपालमे सेहो होइत छै । वन–जङ्गलमे मारे भेटैत छै । मुदा जानकारीके अभावमे ओकर फल ग्रहण करबस’ बहुत लोक चुकैत आएल छै । जानकारीकेँ अभाव रहने व्यवसायिक रुपस’ एकर उत्पादन नइ हुअ सकल छै ।

बजारमे सुखा मेवाक रुपमे हमसभ जे अंजिरकेँ प्रयोग करैत छी । ओ बाहरी देशस’ आबैत छै । बजारमे ४ हजारकेँ किलो धैरमे अंजिर बिकाइत छै । अइस’ बुझल जासकैए ई अपन गुण अनुसार महग जीवनदायी फल छै ।

अंजिरकेँ व्यवसायिक खेती तराईमे कएल जाए त’ आओर सपरत । अधिक जाड़ एवं वर्षात्क समय बाहेक सभतरहक मौशममे एकर खेती क’क’ कृषकजन नीक आम्दानी क’ सकैत छै । तराईमे अधिक गर्मी रहने उत्पादन आ फलक आकार नीक उत्पन्न हुअ सकैए ।

३० डिग्रीस’ ४२ डिग्री धैरको तापमान रहलो पर अंजिर बृक्षके लेल नीक होइत छै । अंजिर खेती लेल बेसी सिंचित भूमिकेँ दरकार नइ होइत छै । बलुवाह आ दोमट बलौट माटि अंजिर उत्पादन लेल नीक मानल जाइत छै ।

गर्म प्रदेशमे अधिक उत्पादन

अंजिर मूलतः मध्यसागरिय भागमे ,दक्षिण–पश्चिम एशिया आ मध्यपूर्वी भागमे उत्पादन होइत छै । समुद्रसतहस’ १२०० मीटर भूमिके उपरी भागधैरके क्षेत्रमे एकर उत्पादन आसानीस’ होइत छै । संसारमे सभस’ अधिक अंजिरके उत्पादन अफगानिस्तान, बलुचिस्तान, पूर्तगाल आ युरोपीय किछु देशसभमे होइत छै एवम् ओतहस’ विश्वबजारधैर व्यापारीसभद्वारा पुंगैत छै ।

मीत्र राष्ट्र भारतमे दक्षिण एवं उत्तरी–पश्चिमी भारतक विभिन्न प्रान्तमे अंजिर उत्पादन होइत छै । जेना महाराष्ठ, तामिलनाडू, मध्यप्रदेश, छत्तिसगढ, राजस्थान, आदि पन्तमे व्यवसायिक अंजिर खेती होइत छै । नेपालमे भारतमे उत्पादीत अंजिर बेसी आबैत छै ।

गुणधर्म
अंजिर देहमे मानवरोगजनक जीवानुकेँ प्रति सक्रियता पूर्वक लड़के काज करैत छै । सूक्षम जीवानुरोधक कृयाशिलता देहमे प्रदर्शन करैत छै । ह्युमनीटी पावरकेँ बढ़बैत छै । जाड़–ठाढ़केँ समयमे शीतलीय स्थानमे अरबैसक अंजिरक सेवन करक चाही । अइस’ अनेक रोगक प्रकोपस’ बाँचल जासकैए आ देहमे तागत सेहो प्राप्त कएल जासकैए ।

पाकल अंजिर फलमे प्रोटिन, लौह, शर्करा, वसा, कैल्सियम, जिंक, बिटामीन–द्य, केरोटीन, टैनिन, एस्कार्विक अम्ल, प्mलेवो नायड्स जेहन रशायनीक तत्व पाइल जाइत छै । जे मानव देह हेतु अतिउत्तम मानल जाइत छै ।

आयुर्वेदीय ग्रन्थसभमे अंजिरकेँ पितशामक, बलकारक, दाहक, स्तम्भक, शुक्रल, त्रिदोष शामक, रक्तदोष शामक, नशागत रक्तपित, शिरोरोग विकार नाशक कहलगेल छै । आयुर्वेदक प्राचीन ग्रन्थ ‘चरक संहिता’के सूत्रस्थानमे,‘सिद्ध भैषज्यमणिमाला’के फलवर्गमे अंजिरक गुण विशेषताके बारेमे सेहो बताओल गेल छै । पाण्डू, कमलपित्त, कुष्ठ, वर्णमे लाभप्रद कहलगेल छै । धातुपुष्टि, श्वांश–कांश,मेदाबृद्धि, सर्वशरीर रोगक निदानमे अंजिर उपयोगी फल मानलगेल छै ।

अंजिरके व्यवसायिक खेती दिश प्रदेश दूके सरकारकेँ विशेष ध्यान दिअक चाही । अइस’ आर्थिक सम्मुन्नति आ कृषककर्मकेँ प्रोत्साहन मीलत । हम उपेन्द्रभगत नागवंशी अपन घरक छत्तपर टीनमे लगाओल समान्य गाछस’ पाँचटा अंजिर फल फरल जेकर ग्रहण बाँइट चुइटक टोल परोसक लोकसंग कएल ।

अहूस’ शिद्ध होइत छै हमरासबहक तराइ प्रदेशकेँ हवापानीमे नीक जकाँ अंजिरक खेती कएल जासकैए । कृषि,वन आ वनस्पति विभाग–निकाय मात्र अइ दिस कृषककेँ प्रोत्सान करए, तकर मात्र दरकार छै । धनुषा, सिरहा जिलाके कमलाकात दिश, रौतहट, सर्लाहीकेँ बागमति कातलोक नदिधार कातक बेजान परल भूमिमे अंजिरक खेती क’क’ आम्दानी कसकैत छै । ईक्षेत्रक माटि अंजिर उत्पादन हेतु उत्तम रहत ।

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