जीवनदायनी उजरका भंगरिया, मानव-पशु दूनुलेल उपयोगी

२०७७ मंसिर २६, शुक्रबार १४:४८
सीमाञ्चल समदिया

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शब्द/चित्र-उपेन्द्रभगत नागवंशी-सीमाञ्चल समदिया,
जनकपुरधाम । प्रकृति सुन्दरतास’ भरल-पुरल हमरसबहक देश नेपालमे विभिन्न तरहक जीवनदायीनी बनस्पतिसभ देशके विभिन्नक्षेत्रमे विद्यमान छै । मुदा राज्य व्यवस्थामे सन्हियाल आन्हराएल चोन्हराएल बैसल छै । कौवा,कोयलमे फरक नइ छुटियाब सैक रहल छै ।

तराईक्षेत्रमे समेत उपलब्द्ध हुअबाला बहुसंख्यक जड़ी-बूटी मादे एकटा महत्वपूर्ण बनस्पतिय झाड़ छै भगंरिया, जाहिके आयुर्वेद शास्त्रमे भृंगराजके नामस’ जानल जाइत छै । भंगरिया केतेक महत्वपूर्ण झाड़ होइत छै ओइस’ प्रायःसभ परिचित होएत । मुदा हम जे बनस्पतिय झाड़के चर्चा एतह करहल छी ओ भंगडि़या नइ मुदा ओहुस’ महत्वपूर्ण आ कएक गुणा अधिक जीवनदायी, चेतना प्रवाहक जड़ी-बूटी छै ।

आयुर्वेदक प्राचीन साहित्यमे एकर नाम अंकित नइ पाओल जाइत छै । मुदा ‘महाभृंगराज’के चर्चा प्राथमिकतासंग भेटैत छै । हुअ सकैए ई ओहे महाभृंगराज होइ ! ओना बाल्मिकी कृत ‘रामायण’ मे लक्ष्मण मूर्क्षित भेला पछाइत हनुमानजी पहार उठाक अनने छलाह , ओइमेस’ जड़ी-बूटी दक लक्ष्मणके निरोग कएल गेल छल । आइयो बोलचालमे लोक ‘लक्ष्मणबूटी’ कहिक सम्बोधन करैत छै ।

लक्ष्मणकेँ बाण लगला पर ओ मुक्षित भेलाह, लक्ष्मण मूक्षित भेला पर एकटा जडि़ मात्र नइ देलगेल छल । चाइर प्रकारके बनस्पतिय बूटी द’ क’ सुखेन वैद्य लक्ष्मणके स्वस्थ्य कएने छलाह । ओहि चाइर प्रकारक जड़ी-बूटी मादे अति महत्वपूर्ण एकटा जड़ी-बूटी उजरका भंगरिया सेहो सामेल छल ; जाहिस’ सम्भवतः  हमसभ बेसी अज्ञात रहैत आएल छी । ओ बुटी हमरसभकेँ तराईक्षेत्रके मिथिला-मधेशके भूमिमे सर्वत्र उपलब्ध छै । मात्र हमसभ ओकर पहिचान आ उपयोगितामे आनबस’ अपनाके बञ्चित कएने छी । जनतब नइ लिअ सकल छी अथवा हुअ नइ सकल होएत दुनु बात भसकैए । अइमे ओहि जीवनदायी वनस्पतिय झारके सम्बन्धमे जनतब दिअके प्रयास कएलगेल छै ।

तराईक्षेत्रके खेत खरिहान, आरि-धूर पर उगल-जन्मल भेटैत छै । मुदा ओकर उपयोगिता सर्वसाधारनबीच नइ भपावि रहल छै । नइ तेहन बहुमूल्य जीवनीय बनस्पति(जड़ी-बूटी)केँ खोज पहिचान करब काज हुअ सकल छै । अइके हम ‘उजरका भंगडि़या’ कहैत छिऐ । आनो आन नाम एकर भसकैए लोक ओहि नामस’ जनैत होएत जे हम ज्ञात करमे लागल छी । योगगुरु रामदेवक परम शिष्य आयुर्वेदज्ञाता बालकृष्ण आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य पुस्तकमे एकर चर्चा कएने छैथ ।

संस्कृतमे एकर नाम—‘ संधानकरणी, व्रणरोपा, व्रणारी’ कहल जाइत छै । हिन्दीमे ‘परदेशी लाङ्गल’, ‘खलमुरिया-तलमुरिया’, ‘सञ्जीवनी बूटी’, देशी सञ्जवनी समेत सम्बोधन कएल जाइत छै । अंग्रेजीमे अइ बनस्पतिके नाम Mexican daisy (मैक्सिकन डेसी) Troidex daisy (ट्रॅायडॉक्स डेसी), एवं Coat buttons (कोटबटन) कहल जाइत छै ! ततहि एकर वनस्पतिय/बिज्ञानिक नाम Tridax procumbens Linn.
(ट्राइडेक्स प्रोकम्बेन्स) कहल जाइत छै ! अइ बनस्पतिय झाड़केँ Asteraceae(ऐस्टरेसी) वनस्पतिय परिवारक मानलगेल छै ।
परिचय
उजरका भंगरियाके पात अण्डाकार २-७ सेन्टिमीटर नम्हर, एवं १-४ से.मी. चौड़गर होइत छै । फूल छोटका-छोटका पीयर आ उज्जर भंगरिय जकाँ होइत छै । फूलके भितरकि मज्जरि पीयर आ बाहरी पातनुमा फूल श्वेत (उज्जर) रहैत छै । भूमि पर भंगरिय सन लत्तरबाला शागजकाँ झार होइत छै । तहिस’ उजरका भंगरिया कहल गेल छै । भूतलस’ २४ हजार फिटके ऊँचसगर स्थान पर समेत खरपतार सन शाग जकाँ हरियर ई बनस्पतिय झाड़ होइत छै । उजरका भंगरियामे ‘फ्लेवोनॅायड’, ‘बी-सिटोस्टेरॉल’, ‘क्यूमेरिक अम्ल’, ‘ल्यूटिओलिन’, क्वर्सेटिन’,  ‘लैरिक, अम्ल’,एवं ‘टैनिन’ जेहन द्रव्य-पदार्थ पायल जाइत छै ।

गुणकर्म
एकर गुणकर्म मूलतः मानव निर्मित कोनो कृतिम अस्त्रस’ दैहिकअङ्गमे क्षति भेला पर ओइमे ई सञ्जिवनी रुपमे काज करैत छै । तैं एकरा देशी सञ्जीवनी नामस’ सेहो उजरका भंगरियाके जानल जाइत छै ।

खेतमे कोदाइर पारैत काल हात पयर अथवा आने अङ्ग कटा जाए, हर जोतैत काल फार लागि जाए आ घातक जख्म भजाए, ओहिमे ई बेसी काज करैत छै । मानवके संगे संग चौपाया पशु पर सेहो ओहने काज करैत छै । बैल-गाय, बच्छा-बाछी, भैसी-भैंसा, परु-पारी, बकरी-खस्सी आदि जानवरके लोहास’बनल कोनो धरगर अस्त्रस’ कटा गेला पर मानवे जकाँ जख्म भेल स्थान पर एकर झार पीसक लगौला पर ततकाल राहत दिअबाला आ कटाएल-घाउ निक करैत छै ।

उजरका भंगरियामे कबकब्बी दूर करब गुण सेहो विद्यमान रहैत छै । कृमिनाशक, (देह भिरत कोना तरहके परजीवी उत्पन्न होए ओहिके नाश करब गुण अइमे विद्यमान रहैत छै ।) घाउघौस भेला पर पीब बनैत छै ओ पीब-पीउज एकर प्रयोग कएला पर नइ बन दैत छै ।

शरीर भितर यकृतरक्षात्मक कार्य करैत छै । व्याधिहरणमे क्षमतावान, सूक्षमजीवाणुरोधि, कटला कुटला पर हुअबाला टेटनश-कैंशरकेँ प्रभाव नइ हुअ दैत छै । व्रणरोपक (कटाएल स्थानके घाउ अदभूत रुपमे भरबाला) रक्तस्राव रोकबाला, अतिसारकरोधी अल्परक्तचाप कारक, प्रमेहरोधी, प्रवाहिकारोधी प्रकृया पुरा करब अई बनस्पतिय झारके मूल गुण होइत छै ।

केशजन्य रोग, स्तनजन्य रोग, चमड़ीजन्य रोग, श्वांस प्रश्वांस, उदर विकार, शोध,वेदना(दर्द), यकृत् विकार, रक्तरोधक, वातजन्य रोगमे उजरा भंगरिया माने देशी सञ्जीवनीके प्रयोग चमत्करी रुपमे काज करैत छै । एहन गुण्कारी बनस्पतिय झार सम्बन्धमे शास्त्रोमे जखन वणर्न नइ भेटैत छै । तखन एकर उपलब्द्धता उपयोगिताके सम्बन्धमे हमरसबहक देशक वनस्पतिय विज्ञोके जनतब कि हुअ सकैए । तैँ अइपर बेसी टीप्पनी नइ करैत । आब देश संघीयशासन व्यवस्थामे आइब चुकल छै ।

कमस’ कम तराई-मधेशक्षेत्रमे कायम पुरुबस- पश्चिम धैरके प्रदेशसरकार अपन-अपनक्षेत्रमे हुअबाला एहन बहुमूल्य आ जीवनदायीनी बनस्पतिके तथ्यांक तयार करए ! कतह कोन जड़ीबूटी होइत छै , ओकर कि, केहन उपयोगिता छै ओहो लेखा-जोखा राखए त’ उत्तम रहत । मात्र वनस्पति विभाग आ कार्यालय खाड़ कएने नइ होएत ।

खोज अनुसंधान आ उपयोग करब तकर अधिक दरकार छै । किएक त’ प्रकृतिस’ जुड़ल वनस्पतिस’ हरेक जीव आशान्वित लाभ लिअ सकैए । मात्र ओकर जनतब हुअ चाही । जाहि लेल सरकार ओकर मातहतके कार्यालयके कर्ताधर्ता इमान्दारीस’ नेत-धरम बचाक अपन कर्त्तव्य पालन करए, तखने सम्भव छै ।

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