सीमाञ्चल समदिया,
जनकपुरधाम । ‘तिला संक्राति’ सैठते जाढ़-ठाढ़मे कमी आबैत छै । मुदा अइबेर तेहन मौशम नइ भरहल छै । दिनो दिन कन्न-कन्नी बढ़ैत जारहल छै । जाहिस’ जनजीवन अस्त-ब्यस्त भरहल छै ।
माघकेँ पाला एहन पैर रहल छै आ कन्नकन्नी ठाढ़स’ लोक घरस’ बहराएब नइ सैक रहल छै । कि खयनाइ-पिनाइ, हगनाइ सभ एकर प्रकारे बाधक भरहल छै । गदेलापर पड़ल पड़ल कम्मर-रजाइकेँ तरमे सभ भूख पियास मेटाइत रहे ओहन अवस्था एम्हर किछु दिनस’ प्रकृति कदेृने छै ।
तराईक्षेत्रमे विशेष रुपस’ जाढ़ बेसी भगेल छै । घनघोर धुइन, मन्द हब्बा सिहकैत रहने कन्न-कन्नी आओर बैढ जाइत छै । एहनमे निर्धन, गरीब, असहाय लोककेँ संगे संग मध्यवर्गिय लोक बेसी फिरसानीमे पड़ैत जारहल छै । सरकार ओहन उदार सेहो हमरसबहक देशमे नइ छै ।
जे, सरकार दरकारी लोककेँ सेवा सुविधा राहत आदि उपलब्ध कराब सकैए । तैँ लोक ठिठुरैत थरथर्राइत जीवन निर्वाहन पर बाध्य छै । प्रकृतिक कुहेस कहिया फटैय आ सुरुज भगवान अपन प्रकाशस’ गर्महाट पृथ्वी पर कोन दिनस’ आनैए तकर प्रतिक्षा अछिए; सर्व-साधारणस’ ल’क’ आन-आन प्राणिकेँ सेहो ।
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