जनकपुरधाम । सनातनधर्म मानवाला समाजमे लोकपर्व चौड़चन एवं शिव-शक्तिक प्रतिक ‘तीज’ दूनु पर्व आइए मङ्गल दिनमे पड़ल छै ।
आजुक दिनमे चौठीचान अर्थात् चतुर्थीके चानके दर्शन पुजन करैत मिथिलामे लोकपर्व चौड़चन मनाओल जाइत छै ।
आकाशमे आजुका दिनमे उगबाला चान दोषयुक्त रहैत छै, तैँ चानके ओहिना निखट्टे नइ देखके होइत छै । अन्यथा देखबाला मानव दोषयुक्त ठहरैत छै । ताहि दुआरे चानके दही, केरा, खीरा आदि फलके हाथमे ल’क’ चान्दके देखबैत फल देखैत चानके देखब अनिवार्यता रहैत छै ।
चौड़चन पर्वमे पुरी, खीड़, खाजा मीठाई, लडू आदि पकमान मिष्ठान अनिवार्य रुपस’ प्रसाद रुपमे चढ़ाओ जाइत छै । एहिके संगेसंग विभिन्न प्रकारके सिजनीया फलफूलके संगे केरा, खीड़ा, सरीफा, मकोय बाइलके बेगरता होइत छै । छोटछोट मटकुरीमे पौरल भरल दही प्रसादके रुपमे अनिवार्य रुपस’ चढ़ाओल जाइत छै ।
चौड़चन भादव शुक्लपक्ष चतुर्थीके दिन कएल जाइत छै । सन्तान सुख, आरोग्य एवं पारीवारीक एकनिष्ठता सामजस्यता एवं अपनत्वता बनल रहे ओहि हेतु चौड़चन कएल जाइत छै । घर-परिवारमे जतेक सदस्य ततेक मटकुरी दही वा फल चढ़ाओ जाइत छै । जेना छैठमे अर्घ देखबैत छै तहिना सांझुक समयमे चानके अर्घ देखबैत पुजा विधान पुरा कएल जाइत छै ।
चौड़चन शास्त्रीय नइ बिशुद्ध रुपस’ लोक पर्व छै मुदा घुमाफीराक अनार्य देव ‘गणेश’के प्रतिक चानके मानिक पुजन होइत छै ओ सन्देश देखलामे आबैत छै । किएक त’ भादव शुक्ल चतुदर्शीके हरेक बिघन्नहर्ता शिद्धीदाता देव ‘गणेश’के पुजनोत्सव अर्थात् जन्मोत्सव सेहो पड़ैत छै ।
‘गणानां त्वा गणपति हवा महे’ (ऋग्वेद-२-२३-१)
ऋग्वेदमे गणेशके नामसंग गणपति जोड़ल आएल छै । अर्थात् गणेश गण व्यवस्थाकालिन समाजके प्रमुख ‘गणपति’ छलैथ । तहिस’ ‘गणानां त्वा गणपति’ अर्थात् गणेश आधिपति छैथ ओ कहलगेल छै ।
संसारसारमे मानव सभ्यताके विकास क्रममे कबिलायी व्यवस्थास’ होइत गण व्यवस्थामे प्रवेश कएने छल । गण व्यवस्थामे गण प्रमुखके गणपति समेत सम्बोधन कएल जाइत छल । वैदिकधर्म दृष्टिस’ आदि देव शीव एवं पार्वतीके पुत्रके रुपमे गणेशके पहिचान कायम छै । सभ देवतासभमे हिनक पुजा आइयो सर्वप्रथम होइत छै ।
अटल शौभाग्यक कामना संग नारीसभव्दारा मनाओल जाएबाला हरितालिका ‘तीज’ शीव-पार्वतीके प्रसन्न करब हेतु कएल जाइत छै । ओहि अनुकुलता हेतु पतिप्रेम पाबैत रही, निष्कंलक रुपमे दाम्पत्य जीवन सुखमय, सूरमय, शक्तिमय बनल रहए आ भोगमय जीवनके सुखानुभूति जीवनपर्यन्त करैत रही ओ अभिप्राय तीजमे अन्तरनिहित रहैत छै ।
तीजपर्व नेपाली नारीसभके लेल महानपर्व मात्रे नइ छै । एकलेखास’ नारीसभलेल देशके प्रथम राष्ट्रिय नारीपर्व छै । मुदा आब दिनानुदिन तीजमे उछृंखलताके बयार समाजमे तेजीस’ आइब रहल छै । एकर बिकृत स्वरुपसभ सेहो देखल जाए लागल छै ।
जाहिमे सुधार आ नियन्त्रण समाजिकस्तर पर होएब आवश्यक छै । अन्यथा बदनामीके दागस’ सनाइत-सनाइत तीज तेजाबी भजाएत ! बिकृत मूलक प्रथाक स्वरुप ग्रहण कसकैए ! नीयम निष्ठा आ सांस्कृतिक जागृति हेतु एहिप्रति सभके सजगता आवश्यक छै ।
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