सीमाञ्चल समदिया,
उपेन्द्रभगत नागवंशी, जनकपुरधाम । हमरासभपर मानव सृजित अथवा प्रकृति प्रदत् कोनो समस्या आइब गेला पछाइते ओकर उपाय खोजी करए लगैत छी । पहिनेस’ ध्यान देल जाए, युक्ति अपनाओल जाए तखन हरेक समस्याके सही आ ठीक समय पर निदान हुअ सकैए । चाहे ओ मानव सृजित समस्या होए अथवा प्राकृति प्रदत्, दूनुस’ जोग सकैत छी ।
जौं नहियो जोगब त’ क्षति न्युन मात्रामे उठाब सकैत छी । मुदा दुर्भाग्यक गप्प अइदिस सरकार, समाजक अगुवा अथवा समाज सुधारके बिल्ला लटकौने देश-राजके लोककेँ भारवहनक जिम्मेवारी उठौने राजनीतिक दलके लोक समयस’ पहिने पूर्वतयारी नइ कए पावैत छै ।
कोबिड-१९के महामारी नेपालमे एकवर्ष पहिनहुँ आएल, लोक फिरसानीमे रहल । ओहिस’ सबक लेल जाय चाही ; आ ओहि चुनौतीके सामना करब लेल पूर्व तयारी कएल जाए चाही ओ साफे ध्यान नइ देल गेल । जकर सुफल आमनेपाली अखनु भोइग रहल छै-अपन, अपनाके जान प्राण गुमा गमाक ! देश जनताके हितके नाममे राजनीतिक करैत आएल दलीय नेताजीसभ अखनु बिलमे नुकाएल छै । जेना जनतास’ कोनो सरोकार नइ होइ । कर्मचारीतन्त्रक बाते आओर कि कएल जाए ।
तथापि कनिमनि ओहेसभ जुगुतर काज जेनतेन मीलक कए रहल छै । आब अखनु देशमे केपी शर्मा ओली नेतृत्वके सरकारव्दारा फेरस’ संसद बिघटन क’क’ निर्वाचनके घोषना कएलगेल छै । आगामी कतिक-२३ आ अगहन ६गते मध्यावधि निर्वाचन कएल जाए ओहन घोषना मन्त्री परिषद्के निणर्य अनुसार प्रधानमन्त्रीके सिफारिस पर राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी कएलीह ।
एहे बितल बैशाख७ गते शुक्र राति १ बाजिक २० मीनटमे कएल गेल संसद बिघटन आ नवनिर्वाचनके घोषनास’ देशमे फेर नवतङ्गग उत्पन्न भगेल छै । राजनीतिक प्राणिसभ बीचमे हड़कम्प मैच गेल छै । जनघातीसभ आब जनताके बीचमे कोनाक जाएत !
प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति संविधानीक व्यवस्था विपरित संसद बिघटन आ निर्वाचनक घोषना कएलक ।
एहन आरोप प्रत्यारोप लगबैत सर्वोच्च अदालतमे आठ-आठटा मुद्दो दर्ज कएल गेल छै । ई बिवादसभ अपना ठाममे छै, राजनीतिक बहस राजनीतिक रुपमे चलैत रहत, सहमति बिमति दल-दल, ओकर नेता-नेताबीच होइत रहत । अवस्था गरमाएत आ सेराएत रहत ।
मुदा जनताके नाममे जनताके हितके बात ल’क’ कएल जाएबाला राजनीतिमे जनता केन्द्रबिन्दुमे हुअ चाही ओहि जनताके भावनाके ख्याल देशकेँ जनप्रतिनिधि साफे नइ करैत आएल छै । बस अपना अपनीमे सहमति कएलक आ सिधे घोषणा कदेलक ! लाइद देलक जनता पर अप्पन भार !! अपन अक्षमता, कलसुता भावना विषय बात आदि । जे सरासर गल्त लोकतान्त्रिक मान-मर्यादा विपरित होइत छै ।
नेपाली जनता छै त’ सोझिया बुद्धियार मुदा समय पर चूइक जाइत छै , तेकर पीड़ा फेर वर्षोधैर उठाक भोग पड़ैत छै । ओहि भोगस’ बांचब उपाय समय रहैत खोजल जाय चाही ! समय पर बकार खोलक चाही । जे समय अखनु आएल छै । मध्यावधि निर्वाचन अखनु होएत नइ होएत ओ अदालती बहसक विषय छै । मुदा निर्वाचन त’ होएत ।
२०७८ कातिक-अगहनमे नइ होएत त’ ०७९ कातिक-अगहनमे होएत ! हरेक पाँचवर्षमे एकबेर संघीय संसदकेँ, प्रदेश संसद आ स्थानीय निकाय(नगरपालिका/गाउँ पालिका)के निर्वाचन त’ होएबे करैत छै । ओ संवैधानिक प्रकृया त’ पुरा होतै ।
निर्वाचन बेरमे जनताके अनकूल अपनक्षेत्र, गाम, नगर, जिला जयवारमे जनप्रतिनिधि नइ भेल तखन हमसभ भौं चमकबैत छी, नाक सिकुरबैत छी । उम्मेदगर उमेदवार केओ नइ भेल, कहैत छी ! हमसभ बाध्य भ’क’ ककरो नइ ककरो भोंट दिअ लेल विवस भजाइत छी, ककरो नइ ककरो मत दिअ लेल बाध्य हुअ पड़ैए ।
कारण हमरासभ लग ‘अप्सशन’ नइ छै ! कोनो बिकल्प नइ रहैए तखनु ! जोगीके नइ त’ भोगीके; भोगीके नइ त’ सुटबाके भोंट दिही पड़ैए । एहन बाध्यता हटाब लेल हमरासभकेँ अखुन्तेस’ जाग पड़त । कोनो उम्मेदवार पसिन नइ अइ त’ हम मतदान ककरो पक्षमे नइ करब । अपन मत सुरक्षित राखब ओ अधिकारिक व्यवस्था हुअ चाही । ‘राइट टू रिजेक्ट’के अधिकार मांग करए पड़त । ओहि लेल लड़ब आवश्यक छै । अखनेस’ स्वर बूलन्द करब आवश्यक छै । भोंट हुअ लागल समयमे बकार फोरलास’ डिरिएला छिरिएलास’ नइ होएत ।
राजनीतिक दलसभ आपसमे सभकेँ सभ मीलले होइत छै । बाहरी रुपमे जतेक जे जकरास’ झगड़ा करैत होए, गाइर फैइज्जत करैत होए मुदा निर्वाचन समयमे सभके सभ तालमेल मीलाक चुनाव लड़ैत छै । जकर परिणति होइत छै पाँचटा दलके पाँच उम्मेदवार जनसमक्ष माने मतदाता लग पुंगैत छै । सजग सचेत मतदाता देखैत छै पाँचो दलस’ उठल पाँचो उम्मेदवार योग्य नइ छै ।
तथापि ओहो बाध्य रहैत छै ककरो चुनब लेल । समान्य मतदाताके आओर बात कि करब । वर्तमानमे जेहन निर्वाचन व्यवस्था छै ओहिमे ओहे पाँचो मेस’ ककरो निर्वाचित कराएब चुनब ओ बाध्यता मतदाता लग रहैत छै । मतदाताके अपन स्वतन्त्र अधिकार नइ देलगेल छै, अखनुका लोकतान्त्रिको व्यवस्थामे ।
तैँ अत्याचारी, बेविचारी, दुराचारी, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, हरुवा,भरुवा, फटहा,दलाल, कन्ना,बइमान, धनसंजोगी, उच्चका-भौंच्चका, गिरहकट्टा, घेंटकट्टा, लगुवा,भगुवा, आदि कोनो नइ कोनो युक्ति लागाक जनताके सवल प्रतिनिधि भजाइत छै । ओहन लोक जीतला पर फेर आओर मजगुत भ’क’ जनतके कुह लगैत छै, कुच-थुर आ थुरबाब लगैत छै । एहन राजनीतिक परिदृश्यसभ बरमहल देखल जाइत छै । अपन दैनिकी जागारिमे लागल हारल झमारल जनता विवस रहैत छै ।
किएक त’ सत्ता भतापर चलैत छै आ दलसभ ओकर नेता,अगुवा कार्यकर्तासभ किछु जनहितके नाम पर करैत रहैत छै । एहे मूलकारण होइत छै पाँचटा दलमे एकदल अत्याचारीकेँ, दोसर बेविचारीकँे, तेसर दुराचारीकँे,चारिम भष्ट्राचारीकँे आ पाँचम् बलात्कारीकेँ टीकट द’क’ चुनावी मैदानमे उताइर दैत छै ।
अहां आम छापके मत नइ देबै नइ दियौ; लताम छापके त’ मत देबै ! लताम छापके नइ दिअके मोन होएत त’ कटहर छापके देबै, ओकरो नइ दिअके मोन होएत त’ खजुर छापमे देबै करबै । खजुर छाप मन नइ परत त’ तार छापमे देबै मुदा देब त’ पड़त । किएक त’ लोकतान्त्रिक व्यवस्थामे एहे त’ एकटा पैघ अधिकार जनता लग रहैत छै ।
जे पाँचवर्षमे एकबेर प्रयोग करब समय आबैत छै, ओहिके छोड़ब मुनासिव नइ होएत । मतदान छोइर देब त’ औचित्य हीन आ देश-व्यवस्था बिरोधी, लोकतन्त्र बिरोधी मानल जाएब ! तैस सजग आ सचेत नागरिक मतदान नइ छोड़त आ नइ छोड़क चाही !
उल्लेखित पाँच दलके पाँच ‘रुपमे विभाजित दलके पाँचटा छापबाला पाँच प्रतिनिधि मादे ककरो एकटाकेँ पक्षमे जाक’ अपन मत जाहिर करहिटा पड़त । अहां मतदाता जनता लग कोनो बिकल्प नइ अइ । अहाँके नइ चाहितो ओहे अत्याचारी, बेविचारी, दुराचारी, भष्ट्राचारी, बलात्कारी उम्मेदवारकेँ चयन करहि पड़त !
अहि बाध्यतास’ उबरब लेल नेपाली जनता अखनेस’ अपन स्वर बूलन्द करो, अपन अधिकारलेल निर्वाचान आयोगकेँ ध्यानाकर्षण कराबो, ‘राइट टू रिजेक्ट’केँ प्रावधान नेपाली जनताकेँ प्राप्त हुअ चाही ओ मांग करो । संघ, प्रदेश वा स्थानीय तह सहित कोनो तरहक निर्वाचन प्रणालीमे शतप्रतिशत मतदान होए ;
मन पसिनगर उम्मेदवार नइ भेला पर अपन मत तटस्त रुपमे राखब लेल मतपत्रमे अलगे खन्ना (कोष्ठ)के ब्यवस्था हुअ चाही ! ओ अधिकार नेपालके मतदाताके प्राप्त होए । देश तखने सबल आ जनता अधिकार सम्पन्न बूझत । जनताके नाम पर राजनीतिक रोटी सेकनिहारसभ सेहो सचेत होएत आ समग्रतामे तखन देश उसासी पथ पर जासकत ।
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