गुणकारी बनस्पतीय झार ‘नोनी’, ‘जीतीया’मे खायबाला साग

२०७८ आश्विन १२, मंगलवार ०३:००
सीमाञ्चल समदिया

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सीमाञ्चल समदिया,
उपेन्द्रभगत नागवंशी, जनकपुरधाम । सनातनधर्म मानबाला समुदायके महिलासभव्दारा मनाओल जाएबाला जनजातीय लोकपर्व ‘जीतीया’के शुरुवाती दिन ‘नहाखाय’मे खायल जाएबाला खाद्य परिकार ‘मडूवा’के रोटी एवं ‘नोनी’के साग प्राथमिकतामे होइत छै ।

नोनीए साग किएक खायल जाइत छै जीतीयामे,आन सागकेँ अनिवार्यता किएक नइ होइत छै, पबनैतीन लेल । ई अकारण नइ छै युगो युगस’ चलैत आएल परम्पराकेँ अन्तर्गत स्वास्थ्य सम्बन्धि लोक विज्ञान एहिमे समेत सम्माहित देखाइत छै ।

अइ नोनी सागमे बहुतराश दैहिक दशास’ सम्बन्धित तत्व नुकाएल छै । जाहिके सेवनस’ पबनैतीन एकलहैत ७२ घण्टाधैरके निराहार पर्व सहजतास’ पुरा कपाबैत छै, देहदशा सुदृढ़ो राइख पाबैत छै । ओहन गुण मडूवा एवं नोनी सागमे सम्माहित रहल देखाइत छै । तहिस’ आब एतह नोनी सागके वर्णन कएलगेल छै ।

उखाइरक आनल अवस्थामे नोनी साग ।

नोनी काम आ नाम
अइ आलेखसंग प्रकाशित साग चित्रकेँ मिथिलामे ‘नोनी’ साग कहल जाइत छै । कनेक खट्टरुस आ नोनछराइन स्वाद रहने ‘नोनी’ कहल जाइत छै । ओना नोनी साग दू-तीन प्रकारके होइत छै । छोटकी मेहिंका पातबाला एवं ओहिस’ कने बड़का पातबला । बड़का पातबाला झारके रुपमे एवं छोटपात भूमिपर लत्तीजकां लतरैत चतरैत फैलैत रहैत छै । जे दूनु चित्र आलेखसंग राखलगेल छै ।

सागके रुप छोटकी नोनीके प्रयोग प्रायः अधिक होइत छै, मिथिला समाजमे । एहे नीको होइत छै । बड़की नोनीके किछु विशेष प्रकारके दबाई बनाबमे प्रयोग कएल जाइत छै । ओना छोटकी नोनी सेहो औषधिय गुणस’ भरल-पुरल होइत छै ।

नोनीके हिन्दीमे ‘लोनी’ कहल जाइत छै । बड़की आ छोटकी लोनी ! संस्कृतमे अइ सागवर्गके वनस्पतिय झाड़के ‘धोटीका’, ‘बृहल्लोनी’ कहल जाइत छै । अंग्रेजीमे-‘गार्डेन पर्सलेन’(Garden Purslane),‘कॉन पर्सलेन’(Kaon Purslane) नामाकरण कएलगेल तथ्य आयुर्वेदीय वनस्पतीय पुस्तकमे उल्लेख भेटैत छै ।

आयुर्वेद अनुसार नोनी सागमे प्रोटीन, केरोटीन, भिटामीन-‘ए’,‘बी’, शर्करा, कार्बोहाइडे्रट, आर्गेनिक अम्ल,सोडियम, पोटैशियम, खनिज, मैग्नीशियम,  जेहन तत्व अधिक मात्रामे पाएल जाइत छै । तहिना क्लेवोन, लीक्यीरीटिन,बाइफ्लेवोनॉयड,म्युसिलेज, अमूल आक्सेलिड, निकोटिक, ग्लाइकोसाइड, टाइटर्पोन आदि रशायनीकतत्व सेहो पाएल जाइत छै ।

नोनीके साग खयलास’ अमाश्य बिकार, रक्त बिकार, मूत्र बिकार,चर्मरोग बिकार, तापज्वर, उदररोग नीक होइत छै । कहियोकाल मात्रो खयलास’ शीरोरोग-‘शीरशूल(मथदुख्खी),नेत्ररोग, कर्णरोग’,नीक फैदाकारी काज करैत छै । अहितरहें मुखरोग-‘दन्तशूल, मूँहपर आएल छांही, बर्रे’ सेहो नोनी साग खएलास’ ठीक होइत छै ।

बड़की नोनी(लोनी) झाड़ ।

नोनी साग किडनी सम्बन्धि समस्या नीक करैत छै । मूँहमे थूक संगे आबबाला रक्तकेँ बन्न करैत छै । एहन गुणकारी बनस्पतीय झार होइत छै नोनी । तथापि एकर उपयोग आन समयमे नहिएजकां लोक करैत छै । आन सागके अपेक्षा एकर उपलब्धतो ओतेक नइ होइत छै । व्यवसायीक खेती नइ कएल जाइत छै । बस जीतीयासन पानिमे एकर घरघरमे अनिवार्यता देखल जाइत छै ।

आधुनिक विज्ञान जे जेना उपयोग करैत होए मुदा प्रचीन समाज पर्व-उत्सव बहाने नोनी, मडूवा,सनसन अनेक खाद्य-बस्तुकेँ उपयोग धार्मिक कृत, संस्कार संस्कृति मादे करैत आएल बोध होइत छै ।

जाहिस’ जीवन उपयोगी स्वास्थ्य समृद्धिकारक बस्तुके सेवन करैत निरोगी काया बनबैत-राखैत आएल छल । जे लोक-संस्कार मिथिला समाजकेँ सांस्कृतिक अङ्ग बनल छै; ओ संकेत बोध ‘जीतीया’सन लोकपर्व करबैत छै ।

तैँ हजारक हजारवर्ष बितला पछाइतो पर्वत्योहारमे सांस्कृतिक पदचापके संगेसंग परम्परागत उपचार पद्धति सेहो कोना अपनाओल एवं विकसित कएलगेल छै , ताहिके गोण रुपमे प्रचलन भेल देखाइत छै । जाहिके पृथक रुपमे आधुनिक विज्ञान वा आहारशास्त्री सेहो नकाइर नइ सकल छै । जय जीतवाहन ! चित्रसभःनागवंशी/सीमाञ्चल !

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