उच्च संस्कृतिके धनि वंशके गणना नइ

२०७८ माघ ८, शनिबार १७:३३
सीमाञ्चल समदिया
simanchal.com

  • 4
    Shares

सीमाञ्चल समदिया, जनकपुरधाम । मानवीयअवधारणाक अत्यन्त महत्वपूर्ण पक्ष होइत छै-‘संस्कृति’ ! संस्कृतिकेँ अंग्रेजीमे Cultur ‘कल्चर’ कहल जाइत छै । सामूहिकता बोधक शब्द छै । संस्कृति प्रत्यक्षरुपस’ संस्कारस’ जुड़ल होइत छै ; संस्कारस’ संस्कृति बनैत आ बिगरैत छै । एकर प्रयोग विभिन्न काल-खण्डमे भेल आ होएत रहत ।

संस्कृतिकेँ विभिन्न सन्दर्भमे उदाहरनीय बनाओल जाइत छै । विभिन्न अर्थमे प्रयोग कएल जाइत छै । जेना-“ऐतिहासिक, दार्शनिक, साहित्यिक, मनोबिज्ञानिक, समाजशास्त्रीय, मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण” इत्यादि ! ओना साधारण अर्थमे मानव, संस्कृतिकेँ प्रयोग “सुसंस्कृत” अथवा संस्कारीक अर्थ-भावमे करैत छै । एकर व्यपकता विशाल छै ।

साहित्य, नीतिशास्त्र, दार्शनिक एवं ऐतिहासिक अर्थमे संस्कृतिक प्रयोग सौन्दर्य, चेतना, बौद्धिक-उत्कर्ष लेल कएल जाइत छै । संस्कृतिक विकासक्रम सुसंस्कारस’ भेल छै । एकर अतिरिक्त सामान्य व्यवहार-प्रकार सेहो संस्कृतिक अङ्ग मानल जाइत छै । आदिम लीपिहीन समयक समाजकेँ जीवनशैलीस’ ल’क’ वर्तमान सम्मुन्त समाजकेँ जीवनपद्धति समेत सम्मलितता ‘संस्कृति’ होइत छै ।

संस्कृतिक एहन ब्यापक आ विशालतम् पक्ष छै जाहिकेँ थोर शब्दमे किन्नहुँ परिभाषित नइ कएल जासकैए । नैतिकता, मधुरता, शिक्षण-प्रशिक्षण, मान-सम्मान, शिष्टाचार, सामाजिक व्यवहार,रहन-सहन,आचरण-विचार सहित बिशिष्ठ लक्षण एवं अपमान-तिरस्कार आदि समेतकेँ संकेत-बोध संस्कृति करबैत छै ।

अहिसभ मानवशास्त्रीय अवधारणाकेँ प्रत्यक्षरुपमे मूल्यांकण कएला पर संस्कृतिमे नीक-बेजाए गप्प-भाव निहित रहल देखाइत छै । तहिस’ संस्कृति ‘जीवन-दर्शन’ छै । जीवन-दर्शनमे समाज, बिज्ञान, मानवीय जीवन-पद्धति, प्राणिजनकेँ उत्पति-व्यवहार समेत निहित होइत छै । जीवनकेँ विविधताकेँ गुणात्मक मूल्यांकण संस्कृतिएस’ कएल जाइत छै ।

जाहिस’ जीवनक विधिसभकेँ जानब-मानब आ परेखब काज होइत छै । मानवीय जीवनकेँ मूल्यविहीन सन्दर्भसभ सेहो एहि अन्तर्गत ग्रहण कएल जाइत छै । मानवीय उद्देश्यकेँ सम्पूणर्ताक पुरक संस्कृति भेल, एवं मानवीय साधनसभकेँ सम्पूणर्ता सभ्यतास’होइत छै । ताहिदुवारे संस्कृति एवं सभ्यताकेँ जानब, पहिचान करब अतिआवश्यक छै ।

एहिकेँ जनतब भेला पछाइत मात्र लोकमानस सभ्य, सुसंस्कृत हुअ सकैए आ सभ्यताक आधारशिला खाड़ कर’ सकैए ! प्राचीनताकेँ जोगाब सकैए ! प्रसार-विकास कर’ सकैए ! तेकराबादे मानव संस्कृतिकेँ जागृत, परिमार्जित करैत,सुसंस्कृतिसमाज बनाब वा राख’सकैए । ओहि अनुभूतस’शिक्षा-ज्ञान आर्जनके बाट प्रसस्त होएत, वर्तमान सपरत आ भविष्य उज्जवल बनल रहत ।

संस्कृति हमरासभके रहन-सहन बुझब-गमब, सोंचब-सम्झब, चिन्तन-मननके शैलीके आधारपर निश्चित होइत छै । प्रतिदिनके गप्प-सरक्का, व्यवहार-विचार, कला-साहित्य, धार्मिक-कृया, मनोरञ्जन आदि; स्वाभाव एवं कर्म-अभिव्यक्तिस’ “संस्कृति” निर्माण होइत छै । जाहि परिवेश-समाजमे लोक रहैए ओहि परिवेश मुताविक सीखल व्यवहार-संस्कार प्रतिमानसभक समग्रताकेँ परिलक्षित कएल जाएबाला सामूहिकता बोधक होइत छै—“संस्कृति ” !

संस्कृति सामाजिक रुपस’ एवं समाजकस्तर पर आर्जन कएल जाइत छै एवं सामाजिक रुपमे एक-पुस्तस’ दोसर-पुस्तधैर बिना झण्झटके हस्तान्त्रण होइत जाइत छै । जाहिमे भूत-वर्तमान आ भविष्य अन्तरनिहित रहैत छै । आगा जाक’ ओ संस्कृति समाजक स्तरके आधारपर हस्तान्त्रित संस्कृति निर्धारण, परिमार्जन होइत छै ।

अहिकेँ सीखब अथवा सीखाब लेल औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रशिक्षणके दरकार नइ होइत छै । सामाजिक प्राणिक स्तरपर नइ, समाजक गतिमानके स्तरपर संस्कृति विकसित होइत छै । एहिमे समय-काल शासन पद्धति, शासकीय मनोबृत्ति आ परिवेश केहन छै; व्यवस्थित-अव्यवस्थित ओहिपर पुरापुरी निर्भर होइत छै ।

हिमवत्खण्ड अधिनक भारतवर्ष अन्तर्गत अनेक कूल-वंशक संस्कृतिमे एकटा अतिप्राचीन ‘नागकूल’के नागवंश-नागवंशी समुदाय सेहो रहल बसल । जकर अप्पन विशाल संस्कृति-परम्परा छल । आइयो ओकर गौरव-गाथा, सांस्कृतिक पहिचान-छाप मेटाएल नइ छै । मुदा, ई समुदायक सांस्कृतिक जाग्रणी अभियानकेँ साहित्यक गत्तामे सन्हियाक राइख देबके काज मात्र भेल ।

नागकूल-वंशकेँ ओकर मौलिकता, परम्परा, संस्कृतिकेँ हेरा देबकेँ प्रयास निरन्तर जारी रहल, तकर माइर एहि वंशक वर्तमान पुस्ता पर पड़ल छै । एहन गम्भिर रुपमे पड़ल छै जाहिस’ अपन पहिचान अपनो नइ कपावि रहल छै आ अपन अस्तित्वके खोज एवं पहिचान कायम करब लेल अपसियांत छै ।

https://simanchal.com/wp-content/uploads/2020/07/ads-simanchal.png
https://simanchal.com/wp-content/uploads/2022/08/bigapan-Jnk.jpg

प्रतिक्रिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित

रौदिया अवस्थामे धान दिवस
रौदिया अवस्थामे धान दिवस
२०८० असार १६, शनिबार १०:३५
सीमाञ्चल समदिया
बीच सडक परफिल्मी शैलीमे डेंगैयां
२०७९ कार्तिक २८, सोमबार २२:४८
सीमाञ्चल समदिया
महोत्तरीके परडि़यामे तनाव यथावत् एकगोटेके हात धरस’ अलग
२०७९ कार्तिक ११, शुक्रबार ०९:३२
सीमाञ्चल समदिया
बलिप्रथा उन्मूलन पर जनकपुरधाममे बृहत् अन्तरकृया
२०७९ आश्विन १५, शनिबार १६:०४
सीमाञ्चल समदिया
Simanchal.com
मिथिला चित्रकलाको विशेषता
२०७९ भाद्र ३०, बिहीबार २३:५९
सीमाञ्चल समदिया
simanchal.com
भूमिहीन नेपालीलेल भूमि व्यवस्थापन पर अन्तरकृया
२०७९ भाद्र ८, बुधबार १९:४२
सीमाञ्चल समदिया