(कथा) अरविन्द कुमार यादव
रामलाल आव अनिवार्य अवकाश भ ऽ गेल छथि । अवकाश भेलाकेवाद सुखमय जीवन आराम स’ वितालेब से बात मनेमन खुब सोइच रहल छथि । बुझु जे हुनका मनमे लरु फुइट रहल हय । मनेमन उत्साहित ओतबे । कनि दिनकेवाद पेंशन पट्टा से हो बैन गेल । आइसँ हुनका कोनो अफिस ठीक समयपर पहुँचबाक कोनो झंझट नै रहल । ठीक समयपर उठनाइ, नहनाई, खेनाइ आब जरुरी नै ।
सबदिन नौ बजे भोजन करैबला रामलाल आइ कनिदेर सँ पत्नी सँ बाजल भोजन भऽ गेल । पेटके कोन पता जे रामलाल अवकाश भऽ गेल हय । पेटके घन्टी नौवे बजे सँ बाजऽ लागल छायल ।
पत्नी बजली “आब अहाँके कतऽ जायके हाय से । अहाँ त आब रिटाइर भऽ गेल छी । कनिकालमे भोजन बैन जेतै ने, आब अहाँके कोनो हडबडी नै । लिय कनि बौआ के खेलाऊ” ।
पत्नीके बात सँ रामलालके मनमे कनि दुःख जरुर भेल । मुदा मन माइर लेल । कोनो बात नै । कनि देरे सही, भोजन भेटबे करत कि । बच्चा खेलबैत खेलबैत ऊ परेशान भऽ गेल । सबदिन ठीक नौ बजे भोजन करबला रामलालके आइ ठीक ११ बजे भोजन भेटल । पेटमे मुसरी दण्ड घिच रहल छायल त एनी रामलाल अपना मनके माइर रहल छायल ।
भोजनमे देरी के बात पुछलापर पत्नी बजली “जे आब समयपर भोजन बनेबाक कोनो जरुरी नै । कनि दोसर काम छेल, से हो कऽ लेली । अहाँके आइ त ११ बजे भोजन भेटल । हम त सबदिन १२ बजे खाइछी । कि हमरा नै भुख लगै हय ?”
बेचारा रामलाल मन मसोइर कऽ रैह गेल । एनि रामलाल अवकाश भेल से बात पुरे गाममे सोहरा भऽ गेल । आब केकरो लडका लडकी देखेबाके होइ त रामलालके लेब आइब जाय । केकरो चिठी कागज बनेबाक होइ त रामलालके दरबजापर पहुँच जाय ।
आब गाममे कोनो सामाजिक काम, धार्मिक कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भोज, वियाह उत्सव, समारोह, उद्घाटन, शिलान्यास, आ वैसार होइ त रामलालके पक्का निमन्त्रण भेटैत छायल । पार्टीक कार्यकर्ता सब से हो सदस्यताके ठेली लऽ ओकरा लग पहुँच लागल जे हमरा पार्टीके सदस्यता लऽ लिय त, हमरा पार्टीके ।
काल्हि तैक रामलालके राजनीति सँ कोनो मतलब नै छायल, ने आइयो हाय । मुदा नेता कार्यकर्ता सब एकता पढल लिखल होनहार कार्यकर्ता बनेबाक लेल ओकरा लग लाइन लागल हाय । यी सब घटना देख रामलालके आब अपना अवकाश जीवन सँ निराश होब लागल ।
कने दिनबाद रामलाल एकटा नौतामे सौसराइर पहँुचल । जे भेटे से कह लागे “अहाँ त आब रिटाइर छी । अहाँके आब कोनो काम नै । खुम खाउ आ परल रहु । घर घुर लागल त सबकोइ कह लागल “कत जायब ? कनिदिन आउर रहुँ न । कोनो अफिस थोरबे छुटै हाय । पहिने त कहियो नै रहै छेली आबहुँ त रहुँ” ।
यी बात सुइन कऽ रामलालके मनमे बहुत दुःख होइत छायल । मुदा करौ कि ? सरकार कैला अवकाशके व्यवस्था कैने हाय ? से नै जाइन । हमर अवकाश जीवन हमरा लेल आफत भऽ गेल । कतऽ जाउँ कि करु ? हे ! भगवान, हे ! जानकी माता ।
अवकाशकेबाद भगवानके भक्ति खुम मन लगाा कऽ करब से मनसा हमर सायद आब सफल नै होत । तोही बचाब हे ! राम । हमरा यी संकट सँ । मन होइयऽ जे कोनो कुट्टी मे चैल जैती । अइ बुरहारीमे हमरा कोन कुट्टीमे रहऽ देत । यी सोइच रामलाल चिन्तामग्न भऽ जाइयऽ । रामलालके आब उठनाइ, नेहनाइ, खेनाइ आ सुतनाइके कोनो ठेकान नै ।
बुझु जे हुनकर दैनिकी निमन नाहित बिगैड गेल हाय । आब ऊ घरके लोगके पसन्द जोग नै रहल । कोनो बात पुछला पर पत्नी सहित घरके सबलोग खौंझा कऽ दौरै हाय । अटेटा ठोठ लेने ।
एक दिन रामलालके पत्नी अपना बेटा सब स कहली “जे रौ अइ बुढबाके कोनो काम दही ने । बेकारके भैर गामके लोग एकरा लऽ लाइन लागल रहै हैय । कोइ कोनो बहने त, कोइ कोनो बहने । हम आ पुतौहुवा त सबके चाह पानी पिबैत पिबैत परेशान भऽगेल छी । अइ समस्याके कोनो जल्दी समाधान खोज ।”रामलालके बेटा सब कह लागल “जे बाउके कोन काम देबही । लोग कहतै जे बुढमे बाप सँ काम करबै हैय ।
पत्नी बजली “जे कोनो बैठारीयेवला काम धरा दही ने । कोनो दर दोकान अपने चौक पऽ खोइल दही ने । जे ऊ अहीमे ओझरायल रहतै । अखनु त उ ठेहगरे हय ने ।”रामलालके पत्नी आ बेटा सब अइ बात पर सहमत भेल । आइ सँ चौकपर सटर खोजनाइ काम शुरु भऽगेल । सटर भेटो गेलै ।
विहान ओइ सटरमे पूजापाठ कऽविधिवत रुप सँ दोकानके शुरुवात कयल जायत । सब सामान आनबाक हेतु रामलालके बेटा सब शहर पहुँच चुकल हय । खरिदारी शुरु भ चुकल हय । पत्नीके खुशी सँ धरतीपर पयर नै हाय ।
धियापुतासब ततबे उत्साहित । आब अपन दोकान होयत त खुब कऽ विस्कुट चकलेट खायब ।
एमहर रामलाल शिरपर हाथ धऽ सोइच रहल छथि । आब विहान सँ हमरा भोरे ६ बजे सँ ल’ क’ राइत ९ बजेधरि दोकान चलाब परत ।
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