सीमाञ्चल समदिया,
जनकपुरधाम । मिथिलाके लोकपर्व ‘तिला संक्राति’ एवं थारु समुदायक ‘माघी पर्व’, नेवार समुदायक ‘घीयु चाकु सल्हुँ’ नहा धोक बृहस्पति दिन सनातनधर्मी लोकसभव्दारा मनाओल गेल छै ।
आजुक दिनमे पवित्र जलाश्यमे स्नान कए तिल एवं तिल-गुड़स’ बनल परिकार खायल जाइत छै । तिल अक्षत एवं उडि़दके दालि, श्वेतफूल जलमे प्रवाहित कए पुजन कएल जाइत छै । गरिब, असहाय, सन्त सन्यासी,पुरोहित आदिकेँ दान दक्षिणा सेहो प्रदानकएल जाइत छै । एहो तिलासंक्राति परम्पराके अंग छै ।
भिन्सरे उठिक नहा धोक घरमे जेठ-श्रेष्ठजनकेँ हातस’ चाउर-तील आ गुड़ मिश्रित अन्न खाइत अपन श्रेष्ठजनकेँ तिल बहब ओ प्रण-वचन विधि पुरा करए पड़ैत छै । तेकराबाद खाश कए तराईक्षेत्रमे तिल-गुडस’ बनल लड्डू तिल, चूड़ा, मुरहीकेँ लाई खायल जाइत छै ।‘तिल-गुड़ खाउ मीठमीठ बाजु तिल बहाउ’ एहन कहबी छै ।
प्रकृतिस’ जुड़ल ईलोक पर्व तान्त्रिक अनुष्ठानिक पर्व छै । प्रतेक वर्ष माघ १गतेके संक्रातिक ई पर्व मनाओल जाइत छै । शरद ऋतु समापन अइपर्व संगे होइत छै एवं वसन्तऋतुक आगमन होइत छै । ओहि हिसाबस’ वर्ष परिवर्तनक दिन सेहो तिलासंक्राति होइत छै ।
तिलासंक्राति दिनस’ दिन क्रमशः बढ़ैत जाइत छै एवं राति क्रमशः छोट होइत जाइत छै । राशि चक्रकेँ चक्रानुसार आकशीयपिण्ड घूमैत मकर राषिमे सूर्य प्रवेश करैत छै । ई अवधि संक्रमणकालिन अवधि होइत छै । जाहिकेँ उत्तरायण सेहो कहल जाइत अछि । आजुक दिनमे बहुतो अध्यात्मिक जगतक लोक कोनो नइ कोना नदी सरोवर एवं पोखरिमे स्नान करब उचित मानैत छै ।
संक्राति दिनमे उत्तर मूँहे बहैत नदि-सरोवरकेँ बहन्तु धारमे स्नान कएलास’ अधिक लाभ होइत छै । सूर्य आ पृथ्वीस’ समय ग्रह नक्षत जुड़ल रहने एकर प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जीवन पर, समय काल घडि़केँ पड़ैत छै । अइ बदलाबके संक्रमनकालिन अवस्था होइत छै ।
संक्रमनकालिन अवस्थामे सभ किछु निकेशुखे रहै ओ अभिप्राय संग तिला संक्राति मनाओल जाइत छै । सक्रमण अवधि निर्विघ्न पार होए तैँ लोक ईपर्व करैत छै । अहिमे ई तान्त्रिक अध्यात्मिक विज्ञान एहन नुकाएल छै ।
तिलासंक्राति दिन भिन्सर लोक तिलके लाई, मुरहीके लाई, चुराके लाई, चुरा दही चीनी मिठा अचार खाइत छै । ततहि रातुक पहरमे तिल चाउर दालि मिश्रित खिचडि़, तिलके चटनी खायकेँ प्रथा छै । खयलाबाद तिलझारके आगि तापब चलन सेहो छै । जे प्रथा विशेषक गामसभमे निर्वाह कएल जाइत छै ।
अइबेर बृहस्पतिकेँ मकर संक्राति तिलासंक्राति लोकपर्व परला पर लोककेँ खिचडि़ खायमे दुबिधा उत्पन्न भगेल छै । किएक त’ अधिकांश लोक बृहस्पतिक खिचडि़ नइ खाय चाहैत छै । बृहस्पतिक खिचडि़ खयलास’ दरिद्रता आबैत छै एहन समाजिक धारना छै । ओना पुरोहित वर्ग पर्व त्योहार अहिदिन परलास’ कोनो फरक नइ पड़त खयलास’ कहलाह तथापि बहुतो परिवार अइबेर संक्राति दिन खिचडि़ नइ खायत ।
नेवार समुदाय सेहो तिला संक्राति दिन तिल गूड़स’ बनल परिकार जाहिकेँ ओसभ ‘घीयु-चाकु’ कहैत छैथ, पुजापाठ,दान दक्षिणा सेहो प्रदान कएला पछाइत ओ ग्रहण करैत छै ।
थारु समुदायकेँ लेल तिला संक्राति नववर्ष होइत छै । मैथिल समुदाय जकाँ परिकार ग्रहण आ विधिसभ पुरा करैत छै । हुनकासभ लेल मुक्ति दिवस सेहो होइत छै माघिपर्व । अहिदिनमे जमिन्दारसभकेँ फन्दास’ मुक्त भेलास’ खाशक पश्चिमीक्षेत्रक थारु लेल मुक्ति दिवस होइत छै तिला संक्राति ।
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